रहस्यवादी दार्शनिक
श्री ओशो रजनीश रहस्यवादी दार्शनिक हैं, उनसे बेहतर प्रेम को कौन जान सकता है, तो आइए, उनके सहारे हम प्रेम -प्रेम खेलते हैं… उसने प्रेम को जाना, तो वह कभी पराजित हुआ ही नहीं, क्योंकि प्रेम को कोई उपाय ही नहीं है हराने का !
तुमने किसी को प्रेम किया, यह तुम्हारा हक था। उसने स्वीकार किया या नहीं किया, यह उसका हक है। तुम्हारे प्रेम करने को कहाँ रुकावट है?
तुम चाँद को प्रेम करते हो– इसका मतलब यह थोड़े ही है कि चाँद को जेब में रखना पड़ेगा, तभी प्रेम जाहिर होगा।
तुम फूलों से प्रेम करते हो– इसका मतलब यह थोड़े ही है कि उनको तोड़कर गुलदस्ता बनाना पड़ेगा, तभी प्रेम जाहिर होगा। पराजित होने की भाषा प्रेम की भाषा ही नहीं है।
प्रेम ने कभी पराजित होना जाना ही नहीं। प्रेम तो सदा जीता हुआ है और जो प्रेम में जीया है, वह जीत ही जीत में जीया है । उसकी कोई हार नहीं है। हारता है अहंकार, क्योंकि अहंकार जीतना चाहता है। प्रेम तो जीतना ही नहीं चाहता, हारेगा कैसे? जहाँ जीत की आकांक्षा नहीं है, वहाँ हार कैसे हो सकती है?