कविता

सत्ता का नशा

सत्ता का नशा
जब सिर चढ़कर बोलता है,
तब इंसान शैतान सा हो जाता है
खुद को भगवान
समझने लगता है।
बिना नीति अनीति के भेद के
अन्याय पर उतर आता है,
धमकी देता है और
अपने पालतू गुण्डों को
बेलगाम छोड़ देता है।
अपने हर आदेश को
खुदाई फरमान बना देता है,
तभी तो वो नीचता की
हद तक उतर आता है।
कुर्सी के लिए
इतना नीचे गिर जाता है कि
अपने मान सम्मान को छोड़िए
पुरखों तक का भी
मान सम्मान स्वाभिमान भूल जाता है।
— सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921