लेख

“भारतीय संस्कृति और रामराज्य की पुनर्स्थापना में  हिंदी भाषा का योगदान”

 

 हिंदी भाषा गङ्गा की भाँति पवित्र, निर्मल और आज भी भारतीय संस्कृति का गुणगान कर रही है। जिस तरह गङ्गा में किसी भी तरह की नदी नाले का पानी मिल जाने से वह वह गङ्गा जल हो जाता है ठीक उसी तरह हिंदी में किसी भी भाषा के शब्द आजाने से वह हिंदी का हो जाता है। हिंदी में पूर्ण सामर्थ्य है, किसी भी भाषा के शब्दों  को अपने मे समा लेने की। हिंदी देव वाणी संस्कृत का सरलतम रूप है जो अपने विभिन्न रूपों (हिंदी की पूर्ववर्ती भाषा) वैदिक काल से महाभारत काल, गुप्तकाल, बुद्ध और महावीर स्वामी के काल से गुजरती हुई मुगलकाल और अंग्रेजी हुकूमत काल की यात्रा करती है, सभी कालों की भाषा शब्दों को समेटते हुए अपने अस्तित्व को ज़िंदा रखती है। जबकि मुगलकाल और अंग्रेजों की पराधीनता के जुल्म भी इसे सहने पड़े। लेकिन जो भाषा अपनी मूलतः संस्कृति को नहीं छोड़ती, वह अपने अस्तित्व को जिंदा रखती है। हिंदी साहित्य के इतिहास में हिंदी के इतिहास को उठाकर देखें तो आदिकाल या वीरगाथा काल में भी हिंदी अपने मूल स्वरूप में अनगिनत थपेड़ों को सहती हुई रासो साहित्य, जैन साहित्य, नाथ साहित्य, सिद्ध साहित्य, अमीरखुसरो, विद्यापति की रचनाओँ में भारत की सनातन संस्कृति के अमर गीत गाती हुई अपनी आने वाली पीढ़ी को धरोवर के रूप में सौंप देती है। जो भारतीय साहित्य विदशी आक्रांताओं द्वारा भारत से लूटकर ले जाया गया उसे राहुल सांकृत्यायन द्वारा विदेशों से लाकर हिंदी की पूर्ववर्ती भाषाओं का अनुवाद करते हुए हिंदी को गति दी। मध्यकाल जिसमें मुगलों द्वारा भारत की  संस्कृति और साहित्यको नष्ट किया जारहा था तब निर्गुण सन्तों ने हिंदी की विभिन्न उपभाषाओं में देश के मूल दर्शन का वृहद काव्य रचा और सगुण भक्त कवियों ने राम – कृष्ण पर काव्य रचकर भारत के स्वर्णिम इतिहास को देश के समक्ष पूरे मान सम्मान के साथ प्रस्तुत किया। 

 भारत में ईस्ट इंडिया की स्थापना के बाद अंग्रेजी सत्ता ने भारत के स्वरोजगार, कृषि व्यवस्था पर प्रहार करते हुए अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया। परिणामतः विदशी वस्तुओं पर महंगाई के साथ भारत की कमर टूट गयी। तब गांधी जी का स्वदेशी अपनाओ का नारा बुलंद हुआ और स्वदेशी अपनाने के लिए स्वराज्य की मांग उठी। बिना स्वराज्य के स्वदेशी लाना कठिन था। देश की जनता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई भूल गयी कि स्वतंत्रता भी कुछ होती है। तब  भारतेंदु  से लेकर मुक्तिबोध तक अनेक कवियों ने स्वतंत्रता के स्वर बुलन्द करते हुए राष्ट्र चेतना का शंखनाद किया। देश की स्वतन्त्रता में हिंदी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 

देश के आज़ादी के बाद राजभाषा के सवाल पर  12 सितम्बर से 14 सितम्बर 1949 तक चर्चा हुई। संघ की भाषा क्या होगी ?  इस विषय पर भारी मंथन हुआ। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, हिंदुस्तानी भाषाओं ने संघ की भाषा बनने अपने-अपने दावे और तर्क प्रस्तुत किये। लोगों के अपने अपने तर्क थे। काफी जद्दोजहद के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। साथ ही अंग्रेजी के  प्रयोग को बरकरार रखा गया। पन्द्रह वर्ष की कालावधि और राजभाषा अधिनियम 1963 के तहत 25 जनवरी 1965 तक ही अंग्रेजी को सरकारी कामकाज में प्रयोग  जारी रखने की व्यवस्था की गई थी लेकिन फिर उसके बाद भी अंग्रेजी को जारी रखने का निर्णय बरक़रार रखा गया। 

लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा है कि हिंदी की अपनी सामर्थ्य है, वह धीरे – धीरे भारत में जन – जन की भाषा बनने लगी। विश्व के कई देशों में हिंदी समझी और लिखी जाने लगी। हिंदी फिल्मों ने हिंदी भाषा को पंख दिये, फिर वह ऐसे उड़ी कि आज विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन औऱ शोध हो रहे हैं। इसके साथ ही जापान, कोरिया, चीन अन्यान्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने उत्पादनों को बेचने के लिए हिंदी भाषा का सहारा लेना पड़ा। 

नयी शिक्षा नीति में पूरे देश में भले हिंदी की अनिवार्यता को वापिस लिया हो लेकिन हिंदी की उड़ान को रोका नहीं जा सकता। आज हिंदी कम्प्यूटर से मोबाइल फोन की भाषा बनने में खुद को अद्यतन रखती है।

केंद्र में सत्तासीन वर्तमान राजनैतिक पार्टी को समझ आया कि सत्ता पाना है तो स्वदेशी की बात करनी होगी, भारतीय संस्कृति की बात करनी होगी, राष्ट्रीय मूल्यों की बात करनी होगी और इसकी व्याख्या का सबसे सरल माध्यम हिंदी हो सकता है । 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उक्त मूल्यों की व्याख्या करने के लिए हिंदी को माध्यम बनाया। परिणाम, सर्वाधिक मतों से  विजय श्री लेकर 2019 में  पुनः सत्ता प्राप्त कर भारतीय मूल्यों की यशोगान करते हुए हिंदी भाषा की बदौलत भारत में पुनः राम राज्य की स्थापना की।

                         डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल-dr.svsharma@gmail.com