असहिष्णु सापेक्ष
”हम कितने असहिष्णु हो गए हैं ?”
हम कहाँ जा रहे हैं ? जब स्वच्छन्दतावश कोई बालिग़ लड़की कुँवारी माँ बनती हैं, तो समाज उसे चरित्रहीन, कुलटा और न जाने क्या-क्या कह पुकारने लग जाते हैं ? लेकिन वही यदि सेरोगेट पद्धति द्वारा कोई कुँवारे पुरुष अगर पिता बनते हैं तो उन्हें बॉलीवुड से लेकर राजनेतागण तक शुभकामनायें देते हैं ! ऐसी दो-राह भरी दुनिया में लोक-लाज के भय से अगर कोई बालिग़ कुँवारी माँ गर्भपात करा लेती हैं या प्रसव के बाद अपने नवजात-शिशु को कचरे के डिब्बे में फेंक देती है तो इसमें गलत क्या हैं ? गलत तो हमारे समाज और उनका नज़रिया है ? हम कितने असहिष्णु हो गए हैं ? दहेज़ देने में असमर्थ परिवार की उम्रदराज़ युवतियां और रंग-भेद की शिकार बालिग़ युवतियाँ आखिर में कितने हार्मोनिक पीड़ित रह पाएंगी !
“अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस में भी रहती हैं अनुपस्थित महिलायें”
प्रति वर्ष 8 मार्च में महिलायें अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाती हैं । खुशी की तलाश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भटकते रहते हैं । सबके अपने-अपने टाइप की खुशियां हैं । आव और ताव के मध्य खुद को तलाशने की होड़ और लत जब लगती है, तो लोग सही-गलत की परख नहीं कर पाते हैं । आज के हालात में जिस तरह से आमजनों के द्वारा औरत को शवाब की नज़रों से देखी जा रही है तथा यह समाचार-पत्रों की खबरों में इनकी पुष्टि भी हो रही है । कही ऐसा तो नहीं कि ये खबरे न केवल बढ़ावा दे रही है, बल्कि मीडिया-पक्ष की स्वतंत्रता को बलि का बकरा बनाकर उनकी सुरक्षा को ढील छोड़ दिया जा रहा है । इतना ही नहीं, औरत भी विलासी बन भोग का आनंद उठा रही है, नारी को इसपर मनन करने की जरूरत है ।
“पुस्तक मेला’ की सफलता”
इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रिंट व मुद्रित पुस्तकों की महत्ता अब भी बरकरार है । अभी राजधानी पटना में पुस्तक-मेला चल रही है । हरतरह के मेले की भाँति पुस्तक-मेले की अवधारणा जिस किसी विद्वान ने की होगी, वे सचमुच में बधाई के पात्र हैं । जिसतरह से विविध भाँति के मोबाइल फोन होने से डाकघरों में चिट्ठियों के आगमन में अस्सी फीसदी की कमी आ गयी है और लोग अपने परिचितों व परिजनों को पत्र लिखने भूल-से गए हैं, उसी भाँति लोग मुद्रित अखबारों और पुस्तकों के बारे में भी कयास लगाए बैठे थे कि इनका मुद्रण भी दम तोड़ देगा, लेकिन भारत में 17-18 वर्षों से इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया पूर्णरूपेण हावी है, तथापि इ-बुक या इ-मैगज़ीन की अपेक्षा मुद्रित पुस्तकों और समाचार-पत्रों का रूतबा अब भी कायम है । फख्त कायम ही नहीं, इनका क्रेज़ कई प्रतिशत बढ़ भी गया है । पटना पुस्तक मेले में ‘भीड़’ पुस्तक-क्रेता के साथ-साथ वैसे पुस्तक प्रेमियों को लेकर भी है, जो महँगे किताब खरीद तो नहीं पाते, किन्तु ऐसे मेले में अंश-अंश पढ़ जरूर लेते हैं । विदेशों में भी मुद्रित पुस्तकों की महत्ता है, अगर ऐसा वहाँ नहीं होता, तो ‘हैरी पॉटर’ या ‘ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ जैसे मुद्रित पुस्तकों की बिक्री ऐसे में तब करोड़ों में थोड़े ही हो पाती !