कविता

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मानव के कुकृत्यों से,
मां वसुंधरा भी अकुलाई है।
मानव ने मानवता त्यागी,
तब यह विपदा आई है।
दया ,प्रेम करुणा सब भूला,
असुरों सा व्यवहार करें।
जीव जंतु तक कापे उससे,
उसका भी आहार करें।
धैर्य टूटा मां प्रकृति का भी,
रच कर वह पछताई है।
भीतर उसके छुपे विषाणु,
पर एक विषाणु ऐसा आया।
बना था नर यह महा विषाणु,
पर प्रभु की माया से घबराया।
छुपा हुआ निजी भवनों में अब,
बचने की गुहार लगाई है।
तन का भूखा, मन का भूखा,
धन के खातिर पाप करे हैं।
अब आई संकट की बेला,
तो रो-रोकर बिलाप करें हैं।
जब कर्मों का दंड मिल रहा,
देता रो रो। दुहाई है।
मानव ने मानवता त्यागी,
तब यह विपदा आई है।

— कामिनी मिश्रा

कामिनी मिश्रा

पिता का नाम- स्वर्गीय विजयकांत पांडे पति का नाम - श्री दीनबंधु मिश्रा वर्तमान / स्थायी पता प्लॉट नंबर 18 राजीव पुरम काकादेव कानपुर यूपी फोन नं.9695252037 जन्म तिथि -01/06/1976 शिक्षा -m.a. B.Ed व्यवसाय -प्रधान शिक्षिका बेसिक शिक्षा परिषद एवं (वरिष्ठ कवियत्री)