अजीत शर्मा , सुबह सुबह उठे। पत्नी शिखा ने गरम गरम प्याली चाय की पकड़ाई। साथ ही उसने सासु माँ को भी कांसे के गिलास में ऊपर तक भरकर चाय दी। चाय क्या थी ,दूध और इलायची सौंफ आदि का काढ़ा। सासु माँ इसमें ऊपर से एक चम्मच असली घी डलवाती थीं मगर अब डॉक्टरों की हिदायत पर अजीत ने हलके दूध की इंग्लिश चाय पीना शुरू किया है तो वह मग से पुड़िया वाली चाय ही पीता है। साथ ही उसे अखबार चाहिए। अखबार पढ़ते समय उसको किसी की दखल नहीं चाहिए। शिखा रसोई में उसके नाश्ते और दोपहर के लंच की तैयारी में लग गयी। यह एक घंटा शांति से गुजरता है क्योंकि उसकी सास चाय पीकर अपनी दिनचर्या में लगी होती है और दोनों बच्चे अभी सोये होते हैं। बेटे अनुज का स्कूल पास की गली में ही है और वह आठ बजे तैयार होता है। बेटी कनिका अभी ढाई साल की है।उसके मुंह में दूध की शीशी लगा देती है। वह भी आठ बजे जागती है। इस बीच शिखा सब्जी रोटी बना लेती है। मगर फिरकी की तरह इस काम से उस काम के बीच नाचती है। सासु जी नहाकर पहले गली के नुक्कड़वाले मंदिर में जाती हैं। तब वह नहा लेती है। तब तक पति के स्नान की बारी आ जाती है। अपना नहाकर गुसलखाना साफ़ कर देती है। पति का तौलिया बनियान लगा देती है। अपने कपड़े पहनते संग ही उसकी कमीज आदि लगाकर वह अनुज को स्कूल छोड़कर आती है। आते ही ताजे परांठे बनाकर टिफ़िन तैयार करती है. बेटी जाग जाती है उसका शौच आदि करवाती है। अजीत बेटी से बहुत प्यार करता है। पूरे समय उससे बातें करता रहता है।
उस दिन भी यही चकिया राग चल रहा था। ठीक साढ़े नौ बजे अजीत कनिका और शिखा को बाई बाई कहकर फ्लैट की सीढ़ियां उतर गया। नीचे स्कूटर पर सवार होकर वह ऑफिस जाता था। कनिका मचल गयी। तो शिखा ने उसे संभाल लिया। वह बालकनी में आ गयी। फ्लैट तीसरी मंज़िल पर था। कनिका अजीत को जाते हुए देख रही थी। वह भी उसको नीचे से फ्लाइंग किस दे रहा था। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। सासु माँ मंदिर से लौट आईं थीं। शिखा ने बेटी को अंदर कमरे में बिठाया और दरवाज़ा खोलने चली गयी। तभी कनिका वापिस बालकनी में चली गयी। अजीत अभी वहीँ किसी से बातें करने में लगा था। कनिका बालकनी के जालीदार जंगले पर पाँव रखकर दुबारा बाई बाई पापा चिल्ला रही थी की अचानक शिखा ने देखा और वह लपक कर उसको वापिस खींच लेने को आगे बढ़ी ही थी की बच्ची ने दोनों हाथों से जंगला छोड़ दिया फ्लाइंग किस देने के लिये। पलक झपकते ही वह गली के पक्के फर्श पर सर के बल गिर पडी। सर बिल्कुल मटके की तरह फूट गया। अजीत स्कूटर स्टार्ट कर चुका था पर गली के आते जाते लोगों का शोर सुनकर पीछे देखा तो दहल गया। फ़ौरन बच्ची को अस्पताल ले जाया गया।
शिखा कुछ मिनट के लिए स्तब्ध रह गयी। उसकी साँस रुक सी गयी थी। सासु माँ पास ही आ गयी थी। चिल्लाईं तो कलेजा हिल गया। शिखा को होश आया तो ज़ोंबी की भाँती नीचे दौड़ी .एक पड़ोसी और उसकी पत्नी ने उसको सम्भाला और अपनी मोटर बाइक पर बैठाकर जाती हुई एम्बुलेंस के पीछे दौड़े .बच्ची ने आँखें पलट दी थीं। जैसे ही शिखा पहुंची उसने एक हाथ ऊपर की तरफ उठाया। उसकी आँखों में पहचान थी शिखा फूट फूटकर बिलख रही थी। डॉक्टर चीखा ” जान है। ज़िंदा है। ” नर्सों ने शिखा को सांत्वना दी। डॉक्टर ने अपने सीनियर को बुला भेजा। आपद्कालीन चिकित्सा शुरू हो गयी। बच्ची कनिका को ऑक्सीज़न लगा दी गयी। उसकी सुषुम्ना नाड़ी ठीक थी और फूटे हुए कपाल से जुडी हुई थी। सर की मुख्य कपाल कई जगह से टूट गयी थी। तीन घंटे की मशक्कत के बाद बच्ची सो गयी या कोमा में चली गयी। हालत सुधरने तक अग्रिम उपचार की इंतज़ार करनी होगी। सुबह से शाम हो गयी थी। शिखा को न भूख न प्यास वह वहीँ ऑपरेशन थिएटर के बाहर फर्श पर दीवार के सहारे निढाल बैठी रही। पहले चार घंटे अजीत भी उसके संग था पर फिर उसको बेटे को स्कूल से घर लाने जाना पड़ा। वहां उसने बेटे को खाना खिलाया . स्वयं उसको भूख नहीं थी फिर भी माँ ने मनुहार करके खिला दिया। चाय का थर्मस भर के वह अनुज के संग हस्पताल वापिस आया। अनुज कनिका को देखकर रो पड़ा। शिखा फिर से सिसकने लगी। एक परिचारिका पास से गुजर रही थी उसने उसे दिलासा देकर चाय पिलाई। गला तर हुआ तो वह और रोने लगी। अनुज भी दुखी था। डॉक्टर ने कहा रात निकल जायेगी तो कुछ उम्मीद है। आप लोग घर चले जाइये। अनुज भी नन्हा सा बालक है। उसको आराम दीजिये . परन्तु शिखा वहीँ डटी रही जानो यमराज का रास्ता रोक लेगी अगर आया तो। बहुत मनाने पर भी वह वहीँ बरामदे में बैठी रही। आते जाते उसे देखते। उसके मुंह से जय साईं राम की बुदबुदाहट सुनते। एक महा काली रात उसकी ममता को डसने की प्रतीक्षा में मुंह बाए खड़ी थी। और शिखा उसके रास्ते में अड़ी थी।
जैसे तैसे भोर हुई। रात की ड्यूटी की परिचारिका घर जाने लगी तो उसपर तरस खाकर उसे अपने कक्ष में ले गयी। वहां शिखा ने मुंह हाथ धोया . चाय पी। आँखें अभी भी बरसना चाह रही थी। बोल रुक गया था। नर्स ने समझाया बुझाया तो थोड़ा सँभली . अपनी मानसिक ताकत का आवाह्न किया और दृढ़ प्रतिज्ञ होकर कनिका की अंतिम श्वास तक उसका साथ निभाने का स्वयं से वायदा किया। नर्स ने उसको बाय बाय कहा और कहा कि वह चाहे तो अन्य स्टाफ के आने तक उसके बिस्तर पर झपकी ले सकती है इससे उसकी ताकत बनी रहेगी। उसके घर फोन करके उसके लिए नए साफ़ कपडे तौलिया आदि भी लाने को कह दिया। उसके जाने के बाद शिखा एक घंटा सो ली पर नौ बजे से नया स्टाफ आना शुरू हो गया। उसका अजीत भी आ गया। सास भी देखने आई थी बालिका को। कहाँ वह उसकी लाडो थी और हरदम दादी दादी कहकर लिपटी रहती थी कहाँ उसे देखते ही दादी ने मुंह बिचका दिया। वहीँ शिखा के सामने बोलीं ,” उम्मीद तो कम ही लगे है। ये तो लाखों खर्च हो जाएंगे।” फिर अपनी जुबान को लगाम देकर बोलीं ”.चलो जो किशन महाराज की मर्जी .पली पलाई कुड़ी . मिनट में क्या से क्या हो गयी। ” शिखा सुनकर रोने लगी तो पास खड़े डॉक्टर ने कहा ,”माँ जी, इसे ठीक करना तो हमारे हाथ में है। आप चिंता न करिये हम जी जान लड़ा देंगे। ”
दोपहर तक शिखा के माँ बाप भी आ गए। उन्होंने सांत्वना दी। पैसे धेले से भी सहायता का वचन दिया। अगले दिन से शिखा घर का काम काज निबटाकर अस्पताल जा बैठती . अनुज को स्कूल से पड़ोसन ले आती। मगर दादी माँ का काम काज तो बढ़ ही गया। बच्ची कोमा में पडी थे। धीरे धीरे अजीत का अस्पताल जाना कम होने लगा। डॉक्टर इंतज़ार में थे की ज़रा हालत सुधरे तो आगे उसके सर का इलाज हो। उसे फिलहाल वेंटिलेटर पर रख दिया। पैसा पानी की तरह बहने लगा। अजीत की माँ ने अपना फैसला सूना दिया।
”अरे कौन सा बेटा है। लौंडिया का क्या गम करना। अगले बरस दूसरी हो जायेगी . डॉक्टरों से कहो नाली हटा दें और छुट्टी करें। ठीक अब क्या होगी। पिछली बार कह रहा था कि सर की हड्डियां तो हमने जोड़ दीं मगर यह बोल या सुन नहीं पायेगी। भगवान् ही बता सकता है की यह फिर से चल फिर पाएगी भी या नहीं। ‘अरे आगा पीछा भी तो सोंचो। कल को यही पैसा अनुज की पढ़ाई के लिए चाहिए। विकलांग को कहाँ उठाओगे बैठाओगे। उसको जाने दो आगे की सोंचो। ”
शिखा से पूछा गया तो वह अडिग रही। ” मैं माँ हूँ। भगवान् मुझे माफ़ नहीं करेगा। कनिका में आत्मा है अभी। आत्मा तो भगवान् होती है अजीत। तुम भी तो बाप हो किस दिल से सुन लिया यह सब। तुम्हारे प्यार में उसने अपनी जान गंवाई और तुम उसे यूं छोड़ दोगे ? ” अजीत शर्मिन्दा हो गया। एक महीना गुजर चुका था एक लाख से ऊपर खर्च हो गया था। आँखों में गति आने लगी थी मगर अभी खोल नहीं पाती थी। शिखा भूख प्यास भूलकर सिरहाने बैठी रहती। उसकी माँ के घर से रोज़ खाना आता था अतः सासु माँ को कुछ काम नहीं करना पड़ता था। भाई ने धन से मदद की। शिखा की बहनों ने मिल जुलकर एक खाते में पैसा डालना शुरू किया। मगर अजीत के कानों में उसकी माँ ने ज़हर डालना नहीं बंद किया। शिखा सुबह घर आ जाती थी। सब काम निबटाकर ही वापिस कनिका के पास जाती थी मगर वह लोग उससे विमुख होते ही गए। अजीत ने लिखित में कनिका का वेंटीलेटर हटाने की अर्जी दे दी। शिखा ने रो रोकर अस्पताल की दीवारों से सर फोड़ लिया। आते जाते उससे सहानुभूति जताते। अंत में उसके छोटे भाई ने अजीत को सही गलत समझाया .चार जने इकट्ठे हुए। अजीत ने अपना फैसला सुना दिया की वह शिखा को तलाक़ देकर दूसरी शादी करेगा अगर उसकी बात नहीं मानी तो।
शिखा ने इतनी परेशानियों के बावजूद कोई व्रत या उपवास नहीं छोड़ा। उसकी अनवरत प्रार्थना ,जय साईं राम का उच्चारण , महामृत्युंजय मन्त्र की माला आदि ने न केवल आते जाते लोगों को उसके प्रति संवेदनशील बना दिया बल्कि उनमें भी भक्ति की शक्ति का संचार किया। यह बात भी कानो कान फ़ैल गयी कि डॉक्टर गौतम कपूर बच्ची के ऑपरेशन बिना अपनी फीस लिए करेंगे। जो भी विशेषज्ञ उसको देखेगा उसे इसी अस्पताल में बुलाया जाएगा ताकि शिखा अपनी गृहस्थी भी संभाल सके। मगर भगवान् कितने ही दिलों में वास करे ,कहीं न कहीं एक शैतान जरूर अपनी ताकत दिखाता है। तीन महीने घसीटने के बाद अजीत का मन अपनी नई शादी पर केंद्रित हो गया।उसने शिखा को पहले जुबान से फिर हाथों से धकियाना शुरू किया। मोहल्ले की अन्य स्त्रियों ने भी अब उसकी तरफदारी करनी शुरू कर दी क्योंकि शिखा की सास सबको रो रोकर अपनी बहू के जिद्दी स्वभाव की कथा सुनाती . ”अरे मैं कहाँ तक सहूँ . मेरा जवान बेटा अंदर तक पाई पाई से खाली हो गया। भरी जवानी में उसको रँडुआ करके अस्पताल जा बैठती है रात को। घर आता है तो सुबह की बासी रोटियां चबाता है। हाय मैं इस उम्र में घर का काम करके मरी जाऊं . उसके मायके वाले अस्पताल में बैठ जाते हैं। दोने चाटते हैं। पूरियां समोसे ले आते हैं नर्सों के संग पिकनिक चले है वहां। यहां ताज़ी दाल रोटी भी नहीं। इतना ही लाड है तो ले जाओ ना अपनी को। ”
शिखा ने देखा मुहल्लेवालियाँ भी उसको टेढ़ी नज़रों से बींधने लगीं। फिर अजीत ने महा अस्त्र छोड़ा। बेटे अनुज को स्कूल से लाना छोड़ दिया। शिखा ने उसको भी किसी सखी से कहकर वहीँ अस्पताल में बुलाना शुरू किया। वह भी नाना के घर से आया टिफिन खाने लगा। एक शाम जब वह घर गयी तो सास ने दरवाज़ा बंद कर दिया। बहुत रोई गाई मगर उसको और अनुज को अंदर नहीं आने दिया। जब वह चिल्लाई तो चार लोगों ने उसी को दोषी बताया। हारकर उसके पिता उसको ले गए। पुलिस ने तलाक़ लेने की सलाह दी मगर शिखा ने बुझे दिल से इस कम्बख्त इंसान से एक भी पैसा अपने और बच्चों के लिए लेने से इंकार कर दिया। अपना कोई अधिकार नहीं जताया।
अनुज की अध्यापिका ने सुना तो प्रधान से कहकर उसकी फीस माफ़ करवा दी। अन्य सहपाठियों के अभिभावकों ने अपनी सामर्थ्य से उसके लिए चन्दा जमा किया और एक बैंक में खाता खोल दिया। शिखा की बड़ी बहन का पति एक लोकल समाचार पत्र के दफ्तर में काम करता था उसने यह कहानी छाप दी और लोगों से सहायता की अपील की। फिर भी शिखा ने जो भी काम मिला वह उठा लिया चाहे सलवारें और पैजामे सिले चाहे बनिए की दूकान में दालें आदि पैक कीं । चाहे बिनाई की।
उधर कनिका ने एक दिन हाथ ऊपर उठाकर जानो बाय बाय किया। सब डॉक्टरों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। सबसे चौंकाने वाली बात थी कि यह छोटी सी हरकत बता गयी कि उसकी स्मरण शक्ति शेष है और वह अपनी अंतिम गतिविधि को ही दोहरा रही थी। उसकी प्रज्ञा में निरंतरता थी। कुछ दिन के बाद उसका उपचार पुनः शुरू किया गया। बहुत धीरे धीरे एक एक करके उसके जिस्म की हड्डियों को जोड़ा गया। देश के अनेक विशेषज्ञों ने इस नन्हीं कली को अपना हुनर आज़माने का मुद्दा बना लिया। तीन वर्ष लगे उसको स्वाभाविक अवस्था में लाने के लिए। जब सभी अवयव जुड़ गए तब उसके शरीर का चलना फिरना ,बैठना ,उठना आदि क्रियाएं ठीक की गईं। कुछ स्नायु संस्थान के उपचार से और कुछ मालिश ,और कवायद से बहुत समय लगा उसको घिसट घिसटकर शरीर को चलाने में। एक हाथ ठीक हो गया। मगर जिस हाथ के बल वह गिरी थी वह अभी भी पंगु है। टांगों में भी गति आ गयी है और वह खड़ी होकर गडीलने के सहारे चलती है।
शिखा उसको लेकर जहांन भर के साधू संतों ,ज्योतिषियों के पास जाती थी और पूछती कि क्या वह बोलेगी . ईश्वर की कृपा से उसकी यह इच्छा भी पूरी हुई। उसके गले से आवाज़ निकलने लगी। स्पीच थेरेपी के प्रताप से अब कनिका पटर पटर बोलती है। उसकी उम्र आठ वर्ष की हो गयी है। केवल उसका एक हाथ नहीं चलता जिसका इलाज जारी है। वह स्कूल जाती है और पढ़ लिख सकती है अपनी सामर्थ्य के अनुसार।
अनुज अपने पठन पाठन में अव्वल आता है और उम्मीद है कि किसी अच्छी लाइन में जाएगा। मगर समस्या साधनों की बरकरार है। अब शिखा नौकरी भी कर सकती है मगर नौकरी देने वाले उसकी जरूरत नहीं समझते। अपना नफ़ा देखते हैं और अक्सर उसको वेतन के नाम पर आधा पौना पैसा ही मिलता है। वह एक किराये के फ्लैट में रहती है। दो कमरे हैं तो एक में किसी छात्रा को बसा लेती है। चंदे आदि से नाम मात्र का सहारा ही है। शिखा के पिताजी रिटायर हो चुके हैं अतः उनकी तनखा एक तिहाई ही रह गयी है। भाई बहन अलबत्ता उसकी मदद कर देते हैं राशन पानी में।
अजीत ने उससे तलाक़ नामे पर सही करवा लिया। और दूसरी शादी कर ली। शिखा ने कभी उधर मुड़ कर नहीं देखा। मगर कभी कभी कनिका नींद में चिहुंक उठती है और बुदबुदाती है ‘बाय बाय पापा’, तब शिखा के आंसू ढुलक आते हैं।