बेटियाँ
बेटियाँ
जीवन का
आधार/विचार/व्यवहार
खुशियों का संसार हैं।
बेटियाँ/पराई हैं
सुन सुनकर मुरझाई हैं
फिर….भी
घर/परिवार/समाज को
हर्षायी हैं।
बेटियां
रिश्तों की पहचान को
आयाम देती हैं।
बेटियाँ पीड़ा सहकर भी
मुसकराई हैं।
बेटियाँ
अपने होने के अहसास को अनवरत दर्शायी हैं।
मूकवाणी से अपनी भावनाएं
ग़म हो या हो ख़ुशी वयक्त करती फिर मुसकराई हैं।
बेटियाँ
उम्मीदों का बोझ लिए
सबकी खुशियों के लिये
अनवरत खिलखलाई हैं।
सुधीर श्रीवास्तव