‘भारतरत्न’ के लिए पत्र
श्रीमान् गृह सचिव,
गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली ।
प्रेषक:-
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हम भारत के लोग ।
विषय:-
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आगामी ‘भारत रत्न’ सम्मानार्थ संत-शिरोमणि ‘महर्षि मेंहीं’ के अग्रांकित उपलब्धियों के तत्वश: उन्हें प्रदानार्थ उनके नाम की अनुशंसा सादर प्रेषित ।
महाशय,
सादर निवेदन है, लगभग 20 करोड़ आबादी को प्रभावित कर रहे महान संत महर्षि मेंही और उनके फैलाये संतमत-सत्संग उनके ब्रह्मलीन (निधन) के 30 वर्ष बाद भी आज बिहार, झारखंड और नेपाल में जिस भाँति से फल-फूल रहे हैं, उनमें संत मेंहीं के योगदान के साथ-साथ बाद के वर्षों में उनके शिष्यों में महर्षि संतसेवी, आचार्य शाही स्वामी, आचार्य हरिनंदन बाबा, श्री दलबहादुर दास इत्यादि के अविस्मरणीय योगदान भी समादृत हैं । बिहार के मधेपुरा जिले में 1885 के वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, तो अपने वर्गमित्र श्रद्धेय मधुसूदन पॉल ‘पटवारी’ के साथ मुरादाबाद (उ.प्र.) के संत बाबा देवी साहब से दीक्षित हो रामानुग्रहलाल से ‘मेंहीं’ बन वे कटिहार (बिहार) के नवाबगंज और मनिहारी को कर्मभूमि बनाए । ‘सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी’ केन्द्रित सब संतों के मत ‘संतमत-सत्संग’ का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार कर लोगों में ‘झूठ,चोरी,नशा,हिंसा,व्यभिचार तजना चाहिए’ का अलख जगाये । फिर नादानुसंधान, सुरत-शब्द-योग और ध्यानयोग-साधना कर कुप्पाघाट (भागलपुर) में पूर्णज्ञान-प्राप्त किए । कई तुलनाओं के आधार पर महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध का अवतार भी माना जाता है। आठ जून 1986 को महापरिनिर्वाण (मृत्यु) प्राप्त किये। महर्षि जी के उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में ‘सत्संग-योग’ की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । इसे भौतिकवादी व्यक्तियों को भी पढ़ना चाहिए । मैंने भी चौथे भाग की समीक्षा किया है । अन्य पुस्तकों में ‘महर्षि मेंहीं पदावली’ , ‘रामचरितमानस सार-सटीक’, ‘विनयपत्रिका सार-सटीक’, ‘सत्संग-सुधा'(दो भाग), ‘महर्षि मेंहीं वचनामृत’, ‘वेद-दर्शन-योग’ सहित उनके सम्पादकत्व में आरम्भ पत्रिका ‘शान्ति सन्देश’ 70 वर्षों से अनवरत् प्रकाशित हैं । ऐसे संत-शिरोमणि के बारे में देश-विदेश के कई विद्वानों ने चर्चा किये हैं, यथा:–
1.श्री मेंहीं जी संतमत के वरिष्ठ साधक हैं— महात्मा गांधी ।
2.महर्षि मेंहीं शान्ति की स्वयं परिभाषा है— डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ।
3.पूज्य मेंहीं दास जी एक आदर्श संत हैं— डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ।
4.महर्षि मेंहीं परमहंस जी विलक्षण संत होते हुए भी एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं—आचार्य शिवपूजन सहाय ।
5.श्री मेंहीं जी के ध्यान-योग-विशेषता सचमुच में महान है–संत विनोबा भावे ।
6.बुद्ध, आचार्य शंकर, ईसा, मुहम्मद, नानक, रामानंद, कबीर, चैतन्य, महावीर जैन, महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर, सूर, तुलसी, रामकृष्ण परमहंस, समर्थ रामदास प्रभृति परामसंतों की परम्परा के श्रेष्ठ लोकसेवी तो हमारे पूज्य महर्षि मेंहीं परमहंस जी हैं— गुलजारी लाल नंदा ।
7.मैं पूज्यपाद महर्षि मेंहीं जी के साथ मात्र दो-तीन दिन ही रहा । मुझे ऐसा मालूम हो रहा है की मैं साक्षात् बुद्ध भगवान का ही दर्शन कर रहा हूँ— बौद्ध भिक्षु जगदीश काश्यप ।
8.पूज्य गुरु महाराज महर्षि मेंहीं सम्पूर्ण विश्व-संस्कृति के ध्रुवतारा हैं— डी0 हॉर्वर्ड (अमेरिका) ।
9.महर्षि मेंहीं जी के साहित्य की आध्यात्मिक विशेषता यह है कि व स्वयं संत होकर संत साहित्य के सम्बन्ध में अपना आचार-विचार प्रकट किये हैं— राहुल सांकृत्यायन ।
10.महर्षि मेंहीं श्रद्धेय एवम् आराध्येय हैं— मदर टेरेसा ।
11.स्वप्न में मुझे जिस महात्मा की छवि आई, आखिर उसे मैंने पा ही ली और पूज्य महर्षि मेंहीं को अपना सद्गुरु मान बैठी— युकिको फ्यूजिता (जापान) ।
12.मैं महर्षि मेंहीं को हृदय से गुरु मान चुका हूँ— नागेन्द्र प्रसाद रिजाल (नेपाल के पूर्व प्रधानमन्त्री ) ।
13.मैंने महर्षि जी के साहित्य को बड़ी चाव से पढ़ी है, सचमुच में महर्षि मेंहीं परमसंत हैं— इंदिरा गांधी ।
14.महर्षि मेंहीं हमारे राष्ट्र के ध्रुवतारा थे— डॉ. शंकर दयाल शर्मा ।
15.महर्षि मेंहीं बिहार के गौरव थे— बच्छेन्द्री पाल ।
16.जिस मेंहीं का मुझे खोज था, वो मुझे मिल गया— बाबा देवी साहेब ।
17.महर्षि मेंहीं बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं—भागवत झा आज़ाद ।
18.श्रद्धेय मेंहीं बाबा अध्यात्म की बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं— वी. पी. सिंह ।
19.संतमत-सत्संग और महर्षि मेंहीं से मुझे बहुत प्रेम है— जे.आर.डी. टाटा ।
20.मेरे सात प्रश्नों को पूछे बिना ही महर्षि जी ने सटीक उत्तर दिए, महर्षि मेंहीं बहुत बड़े महात्मा हैं— रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ।
21.जिसतरह चंद्र और सूर्य विश्वकल्याण के लिए उदित होते हैं, उसी प्रकार संतों का उदय जगन्मंगल के लिए हुआ करता है । हमारे पूज्य गुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कितने ऊँचे थे ? उनकी तपस्या कितनी ऊँची थी ? वे कितने महान थे ? उनका बखान हम साधारणजन नहीं कर सकते हैं— महर्षि संतसेवी ।
22.हमारे सदगुरुदेव महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की छवि सबसे अलग और महान है— शाही स्वामी महाराज ।
23.संत और भगवंत के संयुक्त रूप महर्षि मेंहीं हैं— शत्रुघ्न सिन्हा ।
24.सन्तमत के महान प्रवर्तक गुरु महाराज महर्षि मेंहीं का भारत भूमि पर अवतीर्ण होना हमलोगों का सौभाग्य है— डॉ. रामजी सिंह ।
25.आज भारत के बिहार भूमि पर भगवन् के रूप में परमपूज्य महर्षि मेंहीं जी महाराज ज्ञान प्रदान कर रहे हैं, यह भारत का गौरव है— डॉ. माहेश्वरी सिंह ‘महेश’ ।
26.महर्षि मेंहीं को शत्-शत् नमन्— गोविन्द वल्लभ आहूजा ‘गोविन्दा’ ।
27.महर्षि मेंहीं लोक-परलोक उपकारार्थ जन्म लिये— न्यायमूर्ति मेदिनी प्रसाद सिंह ।
28.सन्तमत हमारा धर्म है और महर्षि मेंहीं हमारे पूज्य गुरु महाराज हैं— दारोगा प्रसाद राय ।
29.अपना देश ऋषि-मुनियों का देश है, इस ऋषि-मुनियों की उत्कृष्ट परंपरा में महर्षि मेंहीं एक प्रमुख संत थे— लालू प्रसाद ।
30.पूर्णियाँ की गोद में खेले महान साहित्यकारों, स्वतंत्रता-सेनानियों के साथ संतों में से प्रख्यात संत महर्षि मेंहीं भी खेल चुके हैं— फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ ।
31.हमारे पूज्य गुरु महाराज महर्षि मेंहीं एक महान व्यक्ति थे— दाल बहादुर बाबा (नेपाल) ।
32.मेरा जब-जब महर्षि मेंहीं जी से साक्षात्कार हुआ है, मैं उनके पुनीत एवम् लोकोत्तर व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा—डॉ. धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री ।
33.शांतिदूत महर्षि मेंहीं बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे— डॉ. यशपाल जैन ।
34.मैं स्वामी दयानंद और महावीर स्वामी से अत्यधिक प्रभावित था, परंतु परमात्मा के तुरीयातीत स्वरुप का बौद्धिक निर्णय और उनकी प्राप्ति की युक्तियुक्त साधना-विधि तो महर्षि मेंहीं जी चरणों में ही बैठकर प्राप्त की — जैन आचार्य श्री ताले जी ।
35.मेरा अहोभाग्य है कि मैं महर्षि मेंहीं जैसे सद्गुरु के संपर्क में आया — विष्णुकांत शास्त्री ।
36.महर्षि मेंहीं विश्व कल्याण हेतु जन्म लिये— आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ।
37.हमारी पत्रिका ‘अवंतिका’ के द्वारा महर्षि मेंहीं जी के हिंदी (भारती) भाषा संबंधी विचार को सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रतिष्ठित विद्वतगण ने सराहा है— डॉ. लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ ।
38.महर्षि मेंहीं जी एक दिव्य पुरुष हैं— डॉ. सम्पूर्णानंद ।
39.चीन-भारत युद्ध में गुरुदेव महर्षि मेंहीं के ध्यानयोग की अहम् भूमिका ने बिहारी सैनिकों को अंदर से मजबूत किया— डॉ. (मेजर) उपेन्द्र ना0 मंडल ।
40.संत मेंहीं महान संत थे— डॉ. महेश्वर प्रसाद सिंह ।
41.मेरे पिता प्रातःस्मरणीय मधुसूदन पॉल पटवारी ‘महर्षि मेंहीं’ के गुरु भाई रहे हैं— योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’ ।
42.भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य-रूप दिखाते समय कहा था- मैं ही सबकुछ हूँ । वही मैं ही ‘मेंहीं’ है- एस. एन. पॉल ।
43.डॉ. माहेश्वरी सिंह ‘महेश’ और डॉ. नागेश्वर चौधरी ‘नागेश’ ने परमसंत महर्षि मेंहीं पर शोध-प्रबंध लिखकर बड़े पुण्य कार्य किये हैं–भूचाल पत्रिका ।
44.महर्षि मेंहीं विश्व के उद्भट विद्वान संत थे— भागीरथी पत्रिका ।
45.महर्षि मेंहीं जन-जीवन में चिर स्मरणीय नाम है— शांति-सन्देश पत्रिका ।
46.महर्षि मेंहीं महान लोक शिक्षक थे— आदर्श-सन्देश पत्रिका ।
47.संतमत-सत्संग के संस्थापक-प्रचारक व ‘सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी’ के अमर गायक महर्षि मेंहीं बीसवीं सदी के बुद्ध थे— साप्ताहिक आमख्याल ।
48.कहते हैं, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की भटकती आत्मा का उद्धार महर्षि मेंहीं आश्रम, कुप्पाघाट में ही हो पायी— दैनिक हिन्दुस्तान ।
49.महान संत महर्षि मेंहीं को सादर स्मरण— दैनिक जागरण ।
50.महर्षि मेंहीं के उदात्त चेतना को चिर नमन्— दैनिक आज ।
——————इसप्रकार से उपर्युक्त तथ्यों के मद्देनज़र हम भारतीय नागरिक होने के नाते आगामी ‘भारत रत्न’ के लिए महर्षि मेंहीं के सुनाम की अनुशंसा करते हैं, इसे कृपया गृहीत की जाय ।
भवदीय:-
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हम भारतीय नागरिक