अपने-अपने मूल्य
हम से कितने हैं, जो अपने आसपास रह रही ऐसी माँ और उनकी संतानों को पर्व-उत्सवों में नए परिधान स्वत: व बिनमाँगे देते हैं ? मैं खुद 30 वर्षों से किसी पर्व-त्योहारों में नए परिधान न तो सिलवाता हूँ, न ही खरीदता हूँ और न ही पहनता हूँ….
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‘पंडालों’ में जो करोड़ों की राशि खर्च किये जाते हैं!
काश! यह अत्यधिक बारिश, बाढ़ादि आपदा से पीड़ित लोगों के सहयोगार्थ संचित भी रहते !
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मेरे घर के छप्पर से पानी ‘चू’ कर घर में फैल गया है, बावजूद बाढ़ पीड़ितों के छप्पर के लिए 10,000 रुपये का प्लास्टिक खरीदकर दिया हूँ !
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साहित्यिक-सहवास मन की उद्वेलिता को खत्म करता है, किन्तु शारीरिक-सहवास तन की उद्वेलिता को बढ़ाता है !
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अली बाबा और चालीस चोर !
आज हर पार्टी और कुनबे में सिर्फ ‘अली बाबा’ बदले हैं, तो उनके गिरहकट 40 मेंबर चोर के चोर ही है, लेकिन 41 में किसी के व्यवहार नहीं बदले हैं, सिर्फ मन्त्र बदल गए हैं ! अब ‘खुल जा सिम-सिम’ से दरवाजे नहीं खुलते !
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इस पीड़ादायी बारिश, फिर बाढ़ आपदा पर पीड़ितों की सेवा के लिए अघोषित कमाई करनेवाले ‘वकीलों’ को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने चाहिए….
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100 में 80 बेईमान ‘जी’ यहाँ, फिर भी भारत महान जी हाँ !