ग़ज़ल-बरसात कीजिए
पहले के जैसी फिर से शुरुआत कीजिए.
आँखों ही आँखों मुझसे कुछ बात कीजिए.
घंटों कहीं पे तन्हा फिर साथ बैठिए,
फिर पैदा आशिक़ी के जज़्बात कीजिए.
वो शाम महकी-महकी बहकी सुबह मिले,
फिर से सुहाने मेरे दिन – रात कीजिए.
मिलिए कभी जो मुझसे तो मुस्कुराइए,
फिर भेंट मुझको इतनी सौग़ात कीजिए.
फिर रुत मिलन की वापस ले आइये वही,
फिर प्यार की वो मुझ पर बरसात कीजिए.
डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9140282859