हिंदी प्रेम
खाना खाने के बाद, बच्चे टी वी देखने में मस्त हो गये और पत्नी जी किचन का काम समेटने लगी। अवस्थी जी मोबाइल ले कर बाहर लॉन में निकल आये। अवस्थी जी चार साल पहले ही बैंक में प्रोबेशनरी ऑफीसर के पद पर नियुक्त हुये थे। और करीब एक साल पहले आपका ट्रांसफर दिल्ली की लाजपत नगर ब्रांच में हुआ है । अवस्थी जी यूं ही फेसबुक चेक कर रहे थे तभी मिश्रा जी का कॉल आया, सामान्य शिष्टाचार के बाद बोले- सर जी, इधर काफी दिन हुये, हम लोगो ने कोई हिन्दी गोष्ठी या सम्मेलन नही कराया, मै क्या सोच रहा था कि अपने पास तो काफी फंड भी बच रहा है और मार्च तो इंड पर ही है, अगर आप कहे तो कोई कार्यक्रम करा ले?
अवस्थी जी थोडा मुस्कुराये और बोले- क्या मिश्रा जी, आपने इस बात के लिये हमे फोन किया, हमे तो लगा कुछ इंट्रेसटिंग बात आप कहेंगे। आप भी न, कहां कहां से ढूंढ लाते हो ऐसे फालतू के विचार, कुछ और सोचियेगा, और फिर थोडा अधिकारियों वाला रोब चेहरे और आवाज में लाते हुये बोले-मिश्रा जी फंड खर्च की चिंता आपका विषय नही।
बेचारे मिश्रा जी ने तो सोचा था सर खुश हो जायेंगे, मगर यहां तो बात पूरी उल्टी ही पड़ गयी। धीमी सी आवाज में अपने आपको बचाते हुये बोला- वो तो सर मुझे लगा आपको हिंदी से विशेष लगाव है तो बस इसीलिये बोल दिया। मिश्रा जी की बात को लगभग अनसुना सा करते हुये अवस्थी जी बोले- क्या मिश्रा जी– इतने पुराने होकर भी नही समझे, अरे मेरे हिंदी प्रेम को केवल हिंदी दिवस तक ही रहने दीजिये, और ठहाका मारते हुये हंस कर फोन काट दिया।
फोन पकड़े बेचारे मिश्रा जी ने सोचने लगे, पिछले वर्ष हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रति उनका लगाव तो देखते ही बनता था, अपने भाषण में उन्होने कहा भी तो था, “मिश्रा जी, जो कि हमारे हिंदी विभाग के संचालक है उनसे मैं व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध करता हूं कि वो हिंदी भाषा को प्रोन्नत करने के ऐसे कार्यक्रम ना केवल हिंदी दिवस अपितु समय समय पर आयोजित करते रहा करें”।
लगभग साठ की दहलीज को पार करने वाले मिश्रा जी को सच में आभास हो रहा था कि हिंदी और उनकी स्थिति में कुछ ज्यादा अंतर नही। और फिर वो कैसे भूल गये कि अवस्थी सर इंडिया के सपूत है ना कि भारत माता के।