विपद व्यवहार
‘राज्य’ के वकील कहते हैं- नियोजित शिक्षक निकाय शिक्षक हैं, तो पंचायत/जिला परिषद/नगर निगम जाने ! देश की सबसे बड़ी पंचायत-कचहरी माननीय सुप्रीम कोर्ट है, उनका कहना है, पंचायत ही सबकुछ है, तो आप (सरकार) वहां क्या करते हैं ? आपके शिक्षा पदाधिकारी घुसपैठिये की तरह विद्यालय क्यों जाते हैं ? राज्य सरकार और केंद्र सरकार का कहना है- नियोजित शिक्षक सरकारी सेवक नहीं हैं, तो उनसे इलेक्शन सम्पन्न कैसे कराते हैं ?
–दोनों सरकार के बोल ‘…. मौसेरे भाई’ की भांति है और दोनों के बर्त्ताव ‘सर्कस’ जैसी है !
••••••
नियोजित शिक्षकों की बहाली से पहले बिहार सरकार द्वारा 3,000 रु साइकिल राशि के लिए, 10,000 रु फर्स्ट डिवीज़न के लिए, 8,000 रु सेकंड डिवीजन के लिए, 54,000 रु बी.ए. पास अविवाहित युवतियों के लिए, 1,000 रु पोशाक के लिए, 500 रु नेपकिन के लिए, 50,000 रु अंतरजातीय विवाह के लिए इत्यादि-इत्यादि नहीं दी जाती थी, ये सभी राशि ‘नियोजित शिक्षकों’ के वेतनों से काटकर दी जाती है ! अगर 243 माननीय विधायक अपने-अपने वेतन- भत्ता और पेंशन न ले और इन योजनाओं के लिए दे दे ! … तो सभी कार्यालय में समान कार्य करनेवालों को समान वेतन मिलने लग जाएंगे !