लघुकथा – बस अब और नहीं
“ओ रज्जो पता लगा लिया किस किसके घर ताज़ा डिलीवरी हुई। किसके घर बेटा हुआ है रे ? चल आज वसूली करने जाते है हाथ बहुत तंग चल रहा है आजकल” कहते हुए किन्नरों की टोली की सरदार गुलाबबानों ने हर एरिया की लिस्ट देखी और बोली “आज एम. जी. रोड़ पर स्पेशल मैं जाती हूँ दो-तीन घरों में बेटे पैदा हुए है।”
और कजरी को साथ लेकर निकल पड़ी दोपहर तीन बजे का समय था तो सब अपने अपने घरों में खा पीकर सुस्ता रहे थे सोसायटी में ज़्यादा चहल-पहल नहीं थी। पता ढूँढते हुए एक घर के आगे से गुज़र रहे थे की घर के अंदर से कुछ शंकास्पद आवाज़ ने गुलाबबानों को आगे बढ़ने से रोक दिया। खिड़की से झाँककर देखा तो गुस्से से खून खौल उठा।
गुलाबबानों का शरीर तगड़ा और तंदुरुस्त था एक ही लात से दरवाज़ा तोड़ दिया घर मालिक का लड़का कामवाली के साथ बलात्कार की कोशिश कर रहा था। लड़की छटपटा कर गिडगिड़ा रही थी। गुलाबबानों की आँखों में ख़ुन्न्स उतर आया। बस अब और नहीं कहते गुलाबबानों ने कमर से कटार निकालते एक ही वार में लड़के के गुप्तांग को खंडित कर दिया।
और बोली हे माँ बहुचर अगर में तेरा सच्चा भक्त हूँ तो अपने भक्त की पुकार सुन। आज के बाद हर घर हमारे जैसे तेरे भक्त ही पैदा हो। ना रहेगा बांस ना बजेगी बाँसुरी तभी बेटीयाँ आज के समाज में सुरक्षित होंगी। और जय माता दी बोलती कजरी को कहने लगी सुन कजरी पूरी टोली में ऐलान कर दे की भले भूखों मर जाएँ पर आज के बाद बेटों की बधाई से नेग में मिली कमाई हराम है।
— भावना ठाकर