गज़ल
बताऊँ कैसे तुझको मैं कहाँ था घर मेरा
ख़त्म ही न हुआ उम्र भर सफर मेरा
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तूने देखा था मुझे जब अजनबी की तरह
पल में जल गया था ख्वाबों का शहर मेरा
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यूँ तो रखता है सारी दुनिया की खबर लेकिन
रहा मेरे हाल से ही यार बेखबर मेरा
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माला दिन रात फेरता हूँ जिनके नाम की मैं
वो भूले से भी करते नहीं ज़िकर मेरा
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एक न एक दिन वो मुझको भूल जाएगा
सच किसी रोज़ हो न जाए कहीं ये डर मेरा
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।