चीरहरण को देख कर
चीरहरण को देखकर, दरबारी सब मौन !
प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन !!
राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार !
घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार !!
कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार !
जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार !!
बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर !
पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर !!
वक्त बदलता दे रहा, कैसे- कैसे घाव !
माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव !!
घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस !
बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश !!
वही खड़ी है द्रौपदी, और बढ़ी है पीर !
दरबारी सब मूक है, कौन बचाये चीर !!
छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव !
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव !!
— डॉ. सत्यवान सौरभ