लघुकथा – मेरा अभिमान
आज राधा बहुत खुश थी। वर्षो पुराना उसका स्वप्न आज साकार हो गया था। वह बहुत गर्व महसूस कर रही थी।
अनायास ही वह यादों के समंदर में डूब गई। बचपन से उसने कलेक्टर बनने का सपना देखा था। जब वह छोटी बच्ची थी तो उसके स्कूल में एक बार कलेक्टर आये थे। कलेक्टर के रुतबे और कार्य से वह बड़ी प्रभावित हुई थी। तभी से उसने मन ही मन फैसला किया था कि एक दिन वह कलेक्टर जरूर बनेगी।
वह मन लगाकर पढ़ने लगी। उसके माता-पिता भी उसका भरपूर सहयोग करते। धीरे-धीरे उसने स्कूल-कॉलेज की सारी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। अब उसकी असली परीक्षा की घड़ी थी। उसने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की परन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था।येन परीक्षा के समय एक दुर्घटना में उसके पिता की मृत्यु हो गई। इस घटना से वह बुरी तरह टूट गई। पिता की लाडली बेटी अनाथ हो गई। अब उसके घर की हालत पतली होती गई। इस बीच एक अच्छा रिश्ता आने पर मां ने उसकी जैसे-तैसे शादी कर दी।
शादी के बाद उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई।उसका जीवन अब रसोई के बर्तनों के साथ बीतने लगा। समय के साथ उसके दो बेटे हुए।
आज उसका बड़ा बेटा इंजीनियर है। छोटा स्कूल मास्टर।उसकी बड़ी इच्छा थी कि दोनों बेटों में से एक बेटा कलेक्टर बने पर यह सम्भव हो न सका।
उसके बड़े बेटे का विवाह एक प्रतिभाशाली लड़की से हुई। बस उसने ठान लिया कि क्या हुआ वह स्वयं कलेक्टर नहीं बन पाई।बेटे भी नहीं बन पाए परन्तु अब वह बहु को कलेक्टर जरूर बनाएगी।
उसने बहु को अपने मन की बात बताई। बहु यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। वह भी आगे पढ़ना चाहती थी।कुछ बनना चाहती थी परंतु पिता की गरीबी के कारण वह आगे बढ़ नहीं पाई। अब यह सुनहरा मौका वह छोड़ना नहीं चाहती थी।
राधा ने अपनी बहु को प्रेरित किया ।वह उसका पूरा -पूरा सहयोग करती। बहु ने अब कोचिंग ज्वाइन कर लिया। वह मन लगाकर तैयारी करने लगी। नतीजा यह हुआ कि वह पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में सलेक्ट हो गई। वह कलेक्टर बन गई ।यह सुनकर राधा तो जैसे खुशी से बावली हो गई। पूरे मोहल्ले में उसने लड्डू बांटा। मोहल्ले की एक चाची ने व्यंग्य से कहा-“अरी राधा, तू या तेरा बेटा कलेक्टर नहीं बने हैं।बहु बनी है फिर भी तू इतनी ज्यादा खुश है।अरे, बहु तो बहु ही होती है।ऐसे भी क्या खुश होना?”
राधा ने कहा,-” क्या हुआ अगर मैं अपना यह सपना पूरा नहीं कर पाई और बेटों ने भी पूरा नहीं किया तो मेरी बेटी जैसी बहु ने मेरा यह सपना पूरा किया। मुझे अपनी बेटी जैसी बहु पर गर्व है।लोग आजकल नारा लगाते हैं – “बेटी मेरा अभिमान।” मैं कहती हूँ बहु मेरा अभिमान।” यह सुनकर चाची ने मौन रहकर राधा का समर्थन किया।
— डॉ. शैल चन्द्रा