धरती कब घूमती है ?
शायर श्री इरशाद कामिल कहते हैं-
“कउ बात नइखे !
मित्र को सुखद दाम्पत्य-जीवन की शुभमंगलकामनाएँ!
मुझे वो ढूढ़ता है रोज मुझमें…..
खुद को रोज कमीज़ की तरह पहनता हूँ !”
तो अपुन विचार हूं-
“अगर लंबी ज़िन्दगी जीनी हो
तो खूब भूख लगे, तब खाइये
और अधिक उम्र तक अविवाहित रहने की चेष्टा कीजिए !”
और–
“धरती कब कहती है;
मैं सिर्फ गुलाब उगाऊं !
वो नागफनी भी उगाती;
औषधि औ’ गजराघास भी !”
फिर–
“कनखियों से तीर चला कर तूने,
ये कैसी प्रेम उड़ेली है, प्यारी ?
इन तीरों ने कर दिल को छेद,
चुकी चली गयी जीवन म्हारी !”
और फिर-
“हरबार शब्दों के समंदर में कूदती हो
जानेमन ! तुम कमाल करती हो !
कभी ठहर तो जा, अपनी दुनिया में
कि एक-दो पल आराम कर लें !”
फिर श्री इरशाद कामिल कहते हैं–
“ना सोच खोलता हूँ,
ना बात खोलता हूँ;
वो हाल पूछता है,
और मैं झूठ बोलता हूँ !”
अंत में अपुन विचार–
“कनखियों से तीर चला कर तूने,
क्यों पकड़ी हो ‘धनुष’ ए गोरी ?
इन तीरों ने दिल को कर छेद…
ये कैसी प्रेम, घोली है गोरी ?
हम हैं प्रेम में घायल जन्मों से!
अब तू वार या सँवार मुझे, गोरी!”
अब हँस दीजिए–
लिपिक को बड़ा बाबू क्यों कहा जाता?