सामाजिक

नागालैंड की पोचुरी जनजाति

पोचुरी नागालैंड का एक प्रमुख जनजातीय समूह है I फेक जिले में इनका निवास है I नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 166 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेलुरी शहर में ये मुख्य रूप से केन्द्रित हैं I पोचुरी किसी एक जनजाति का नाम नहीं है, बल्कि यह तीन जनजातियों की सम्मिलित संज्ञा है I ये तीन जनजातियाँ हैं – कुपो, कुचु और खुरी I पोचुरी (POCHURI) तीनों जनजातियों (KUPO, KUCHU, KHURI) के अंतिम अंग्रेजी अक्षरों PO, CHU, RI को मिलाकर बना है I ये तीनों जनजातियाँ सपो, केचुरी और खुरी नामक गाँव में रहती थी I SAPO, KECHURI और KHURY गाँव के अक्षरों PO, CHU और RY को मिलाकर भी POCHURY बनता है I एक लोककथा के अनुसार इन तीन गाँवों में परस्पर झगड़े होते रहते थे I रोज – रोज के झगड़ों से तंग आकर इन समुदायों के बुजुर्गों ने इन जनजातियों के बीच एक शांति समझौता कराया I तब से ये एकता के सूत्र में बंध गए और वेलोग एक जनजाति की तरह शांतिपूर्वक रहने लगे I ‘पोचुरी’ समूह में इन तीनों जनजातियों के अतिरिक्त संगतम और रेंगमा जनजातियों के भी उपेक्षित लोगों को शामिल कर लिया गया है I ऐसा विश्वास है कि पोचुरी लोग सर्वप्रथम मेलुरी क्षेत्र में आकर बसे थे I एक दूसरी लोककथा के अनुसार पोचुरी की उत्पत्ति अखगो गाँव के निकट पृथ्वी से हुई थी I वर्ष 1991 की जनगणना में पोचुरी समुदाय को सर्वप्रथम एक अलग जनजाति के रूप में मान्यता दी गई I पूर्वोत्तर के अन्य समुदायों की भांति पोचुरी जनजाति का भी प्रमुख भोजन चावल है I वे चावल के साथ नमक, मिर्च, सब्जियां भी खाते हैं I सभी लोग मांसाहारी होते हैं I ये लोग बकरी, सूअर, बत्तख, मुर्गा इत्यादि पशु – पक्षियों का मांस खाते हैं I ये लोग जंगल से प्राप्त कंद – मूल और पत्ते भी खाते हैं I ये लोग चावल से बनी मदिरा का अत्यधिक मात्रा में नियमित सेवन करते हैं I धार्मिक त्योहारों या सामाजिक उत्सवों के अवसर पर मदिरा पीना – पिलाना अनिवार्य है I ये लोग दूध अथवा दुग्ध उत्पादों का सेवन नहीं करते हैं I कभी – कभी बिना दूध की चाय पीते हैं I यह एक पितृसत्तात्मक समाज है I पिता ही परिवार का मुखिया होता है, उसी का निर्णय अंतिम होता है I पुत्र पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है I महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है । यहां तक कि अगर परिवार में कोई पुरुष बच्चा नहीं है तो पुरुष का रिश्तेदार पूरी संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है । अमीर माता-पिता अपनी लड़की को चल और अचल दोनों प्रकार की संपत्ति उपहार में देते हैं जो उनके द्वारा खरीदी या अर्जित की जाती है। पूर्वोत्तर के अन्य समुदायों की तरह इस जनजाति का भी मुख्य पेशा कृषि है I ये लोग झूम खेती करते हैं I भूमि पर सामूहिक अधिकार होता है तथा ग्राम परिषद् का कर्तव्य है कि वह झूम कृषि के लिए भूमि का वितरण समान रूप से करे I चावल इनकी मुख्य फसल है I अन्य फसलें हैं –सब्जियां, मक्का, फल इत्यादि I ये लोग पर्वत की ढलान पर संतरा, अन्ननास, लहसुन, निम्बू आदि का उत्पादन करते हैं I महिला – पुरुष सभी खेतों में काम करते हैं I महिलाएं हल नहीं चलाती हैं I दो वर्षों तक ही आबंटित जमीन में खेती की जाती है, इसके बाद उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, अतः दो वर्षों के बाद ग्राम परिषद् द्वारा खेती के लिए नई भूमि का आबंटन किया जाता है I ये लोग बकरी, बत्तख, कबूतर, मुर्गी, सूअर आदि पालते हैं I महिलाएं कताई – बुनाई में दक्ष होती हैं I प्रत्येक घर में हथकरघा मौजूद होता है I बुनाई इस समुदाय का कुटीर उद्योग है I इनके बुने हुए कपडे कलात्मक और मजबूत होते हैं I बांस और बेंत की गृहोपयोगी वस्तुएं बनाने, लकड़ी और मिट्टी के सामान बनाने में भी ये लोग पारंगत होते हैं I पहले इस जनजाति में बहुविवाह प्रथा थी I धनी व्यक्ति चाहे जितने विवाह कर सकता था लेकिन ईसाईकरण के बाद धीरे – धीरे बहुविवाह प्रथा समाप्त होती जा रही है I इस समुदाय में वधू मूल्य की प्रथा अभी भी विद्यमान है जो मिथुन, भैंस आदि के रूप में दिया जाता है I समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त नहीं है I तलाक होने पर महिलाओं को संपत्ति का एक चौथाई हिस्सा दिया जाता है, शेष हिस्सा उसके पति के पास रह जाता है I यदि पत्नी किसी गंभीर अपराध या व्यभिचार में लिप्त होती है तो संपत्ति में उसे कोई हिस्सा नहीं मिलता है I हालाँकि पोचुरी में कई समूह शामिल हैं, आमतौर पर पोचुरी महिलाओं की स्थिति को समाज में समान नहीं माना जा सकता । परंपरागत रूप से वे कृषि गतिविधियों और घरेलू कार्यों में पुरुषों के साथ समान जिम्मेदारियों को वहन करती हैं । महिलाओं को युद्ध, शिकार और मछली पकड़ने संबंधी मामलों में भाग लेने या कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। महिलाओं को पुरुष के हथियारों को छूने से भी मना किया जाता है। यह माना जाता है कि उसके हथियार को यदि किसी महिला ने स्पर्श कर दिया तो उससे कोई जानवर नहीं मरेगा । अपने पति की मृत्यु के बाद विधवा परिवार की मुखिया बन जाती है जब तक कि उसके पुरुष बच्चों की शादी नहीं हो जाती। एक विधवा भले ही परिवार का मुखिया हो, लेकिन वह अपनी ससुराल वालों के परामर्श के बिना अपने पति की संपत्ति को नहीं बेच सकती है। इस समुदाय में बच्चे को गोद लेने की अनुमति है I गोद लिए बच्चे को भी वही अधिकार प्राप्त है जो अधिकार स्वाभाविक उत्तराधिकारी को प्राप्त होता है I पारंपरिक ग्राम परिषद जनता द्वारा चुनी जाती है। उन्हें अनेक प्रशासनिक शक्तियां प्राप्त हैं, लेकिन सरकार ने उनकी न्यायिक शक्तियों को समाप्त कर दिया है । ग्राम परिषदें क्षेत्रीय परिषदों का चुनाव करती हैं जो कल्याण और विकास संबंधी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होती हैं I वे अंतर-ग्राम विवादों का भी निपटारा करती हैं। ग्राम परिषद अध्यक्ष के नेतृत्व में ग्रामीण विकास बोर्ड में 5-6 सदस्य होते हैं जो गाँव की विकास योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं । पहले बुजुर्गों द्वारा पूर्वजों के नाम पर नवजात बच्चों के नाम रखे जाते थे लेकिन ईसाईकरण के बाद अब बाइबिल के आधार पर नाम रखे जाते हैं। पहले नवजात शिशुओं के लिए पारंपरिक अमोतसीकोसी संस्कार किया जाता था जिसमें बच्चों के सिर का मुंडन भी किया जाता था। बच्चा जब पांच साल की उम्र में पहुंचता था तो एकोनाकोवे संस्कार (कान छिदवाना) किया जाता था, लेकिन अब इस समुदाय ने इन संस्कारों को पूरी तरह छोड़ दिया है । पोचुरी समाज का पारंपरिक धर्म एनल है जिसमें विभिन्न शक्तियों की पूजा की जाती है। आकाश में रहनेवाली शक्ति या देवता का नाम मुखु-मुथा और फीरोनी है । ग्राम प्रधान भी वरिष्ठतम पुजारी होते थे और सभी महत्वपूर्ण बलि उनके द्वारा दी जाती थी । पहले समाज में पारंपरिक वैद्य और जादूगर भी मौजूद थे। पोचुरी लोग पोचुरी भाषा बोलते हैं जिसकी सात प्रमुख बोलियाँ हैं I पोचुरी भाषा की बोलियाँ हैं – मिलुरी, फोरी, यिसी, अपोक्षा, फोंगखुंगरी, सम्बुरी और कुकी I ईसाई धर्म अपना लेने के बाद से क्रिसमस इस समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार हो गया है। येमशे पोचुरी जनजाति का प्रमुख त्योहार है I यह नागालैंड में व्यापक रूप से मनाए जानेवाले फसल त्योहारों में से एक है। इस महत्वपूर्ण फसल उत्सव को मनाने के लिए पूरी पोचुरी जनजाति एकत्रित होती है। इस त्योहार में कुछ रस्में पोचुरी संस्कृति से संबंधित हैं। इस त्योहार के अवसर पर लोग पारंपरिक नृत्य, लोक संगीत और दावत के माध्यम से अपनी खुशी का प्रदर्शन करते हैं। सभी लोग स्वयं को अपने पारंपरिक परिधानों से सजाते हैं और उल्लासपूर्वक त्योहार मनाते हैं। इस त्योहार का आयोजन नागालैंड की राजधानी कोहिमा में अक्टूबर माह में किया जाता है। त्योहार आमतौर पर सितंबर के अंतिम सप्ताह में शुरू होता है और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक चलता है। इस त्योहार के दौरान किए जाने वाले बांस नृत्य का बहुत महत्व है और विश्व स्तर पर इस नृत्य रूप को मान्यता मिली है। अच्छी फसल की कामना से यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार में दावत और समारोहों में मक्का और बाजरा को छोड़कर चावल का उपयोग किया जाता है । त्योहार के दौरान पुजारियों द्वारा विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन किया जाता है I
पोचुरी जनजाति कई जनजातियों का संगम है I अतः इसमें वैवाहिक रीति – रिवाजों के भी कई रूप मिलते हैं I सामान्य रूप से लड़के के माता-पिता मध्यस्थ के द्वारा विवाह हेतु लड़की के परिवार से संपर्क करते हैं। हालांकि अमीर लड़के के पिता सीधे लड़की के परिवार से संपर्क कर सकते हैं। यिसी समूह में लड़के के दादा-दादी लड़की के घर जाकर शादी के लिए लड़की के हाथ मांगते हैं । यदि विवाह प्रस्ताव पर लड़की और उसके माता-पिता द्वारा सहमति व्यक्त की जाती है तो दोनों परिवारों के बीच कुदाल का आदान-प्रदान होता है । ‘अखेगओ’ समूह में प्रथा है कि जब तक लड़की के माता-पिता द्वारा विवाह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाता तब तक आम तौर पर लड़के के माता – पिता कोई पेय पदार्थ ग्रहण नहीं करते हैं I लड़की के माता – पिता की स्वीकृति के बाद कुदाल का आदान-प्रदान होता है । विवाह के लिए कोई निश्चित उम्र सीमा तय नहीं है I धनी व्यक्ति अपने बच्चों की शादी 15 – 17 वर्ष की उम्र में कर देते हैं जबकि गरीब लोग अपने बच्चों की शादी 20 – 25 वर्ष की उम्र में करते हैं I विवाह में लड़कियों की शारीरिक सुन्दरता नहीं देखी जाती बल्कि घर अथवा खेतों में काम करने के कौशल को प्राथमिकता दी जाती है I ऐसा माना जाता है कि परिवार का धन – वैभव महिलाओं की योग्यता और कार्य कुशलता पर निर्भर करता है I मेलुरी – लेफोरी समूह में पुत्र के विवाह के पहले पिता का आवश्यक कर्तव्य है कि वह अपने पुत्र के लिए मकान बनवाकर दे I शादी – विवाह रात्रि के समय होते हैं I शाम से आरंभ होनेवाली शादी की प्रक्रिया आधी रात को ख़त्म हो जाती है I शादी के बाद प्रथम रात्रि में दूल्हा – दुल्हन एक साथ नहीं सोते, नववधू अपनी दोस्तों के साथ सोती है जबकि दूल्हा अविखु (सार्वजनिक युवागृह) में सोता है I पोचुरी समुदाय में सह पलायन रीति से भी विवाह होते हैं लेकिन यह तभी वैध माना जाता है जब आवश्यक संस्कार संपन्न करने के बाद ग्रामीण प्राधिकारियों द्वारा इसे विधिसम्मत घोषित कर दिया जाए I लड़की के माता –पिता द्वारा विवाह के अवसर पर उपहार के रूप में बीज, दाव, कुल्हाड़ी, टोकरी, कंठहार, शाल आदि दिए जाते हैं I पति – पत्नी के बीच तलाक का फैसला ग्रामीण प्राधिकारियों द्वारा किया जाता है I अपने पति की मृत्यु के बाद विधवा परिवार की मुखिया बन जाती है I अगर उसके बच्चे अविवाहित हैं तो वह अपने पति की जिम्मेदारी संभालती है। यदि विधवा के पास लड़का है और वह अपने माता-पिता के पास लौटने या पुनर्विवाह करने की इच्छा रखती है तो उसे अपने दिवंगत पति की चल संपत्ति का कोई हिस्सा नहीं मिलता है। यिसी समूह में अगर किसी विधवा के पास कोई बच्चा नहीं है या केवल एक लड़की है तो उनकी चल संपत्तियों को विभाजित किया जाता है । संपत्ति को दो बराबर हिस्सों में बाँट दिया जाता है – एक हिस्सा पति के रिश्तेदारों को और दूसरा हिस्सा पति के माता-पिता को दिया जाता है। मेलूरी-लेफोरी समूह में विधवा को केवल एक तिहाई हिस्सा मिलता है। हर परिवार के लिए बच्चे का जन्म हमेशा एक सुखद अवसर होता है। गरीब वर्ग में एक परंपरा है कि बच्चे के जन्म के बाद माँ और बच्चा दोनों आठ दिनों तक घर के अंदर रहते हैं I अगर लड़का है तो आठ दिनों तक घर के अंदर रहते हैं और लड़की के मामले में छह दिन तक घर के अंदर रहते हैं । इन प्रतिबंधित दिनों के समाप्त होने के बाद एक नामकरण संस्कार आयोजित किया जाता है जहां बच्चे का नाम उनके पूर्वजों के नाम पर रखा जाता है। यिसी समूह में बच्चे के जन्म के बाद उसके माता-पिता और मामा – मामी भोजन पकाते हैं और आपस में भोजन का आदान-प्रदान करते हैं। बच्चे के जन्म के दिन से 10 – 30 दिनों के भीतर बच्चे का मुंडन करने की परंपरा है I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]