हास्य व्यंग्य

मेरा गांव मेरा देश मेरा

मेरा गांव भी देश के अन्य गांवों की तरह अनेक जातियों का संगम स्थल है I पहले सभी लोग मिलजुलकर रहते थे परंतु जब से गांव में शहरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी है और शिक्षा का प्रसार हुआ है, तब से एकता की जगह अनेकता, निर्माण की जगह संहार और जोड़ने की जगह तोड़ने की प्रक्रिया तेज हो गई है I अब हर जाति के अलग -अलग खूंटे हैं और अपनी-अपनी पंचायत I सामाजिक न्याय के सुनहरे नारे के साथ सामाजिक अन्याय का चक्र तेज हो गया है I अब गांव शहर बनते जा रहे हैं और शहरों में गांवों की छवि को कैद करने की कोशिश हो रही है – कभी कैमरे में तो कभी गमलों में I फिल्मों में प्रदर्शित गांव की प्रेरणा भूमि शहर होते हैं I गांव के पनघट वीरान हो गए हैं और चौपाल की जगह टीवी का मायावी संसार आबाद हो गया है जहां फिल्म आधारित कार्यक्रमों की पुरस्कार आधारित मृगमरीचिका होती है I अब पंच प्रपंचावातर हो गए हैं और मुखियागण दोधारी तलवार I बसंत के आगमन की सूचना दूरदर्शन देता है तथा सावन- भादों में बारहमासे और झूमर की जगह ‘चोली’ के पीछे छिपी वस्तु की खोज होने लगी है I ग्रामवासी अब गंवार नहीं रहे, अब तो शहरी बाबुओं की बुद्धि भी उनके सामने लाचार होकर पानी भरने लगती है I साड़ी और सलवार का निर्मोक उतारकर गांव अब जींस युग में प्रवेश कर चुका है I शहर अब जींस युग को छोड़कर उत्तर आधुनिक युग अर्थात उत्तरीय उतार युग में प्रविष्ट हो गए हैं I ग्रामीण बालाएं नए जमाने की आहट को पहचानकर अपना देहातीपन छोड़ने लगी हैं I गांव की हवा में माटी की सोंधी गंध की जगह बारूद की गंध तैरने लगी है I ग्रामीण शाम भजन- कीर्तन और किस्से- कहानियों में नहीं बीतती बल्कि राजनीति के दंगल तैयार करने में व्यतीत होती है I कमीशन, परसेंटेज ,परमिट, रिश्वत आदि शहरी पृष्ठभूमि वाले शब्दों से गंवई परिवेश भी अनजान नहीं रहा I अपने काम से मतलब रखने वाले सीधे – साधे लोगों को ‘भोंदू’ जैसे बेचारगीमिश्रित विशेषण दिए जाते हैं, जबकि शकुनीधर्मियों को ‘चालू’ ही नहीं, बल्कि बुद्धिमान की संज्ञा दी जाती है I गांव में हल -बैलों की खरीद- बिक्री कम हो गई है और खादी वस्त्रों की बिक्री उछाल पर है I
गांव: दृश्य एक
बाढ़ बिहार का स्थायी भाव है I इस अभागे प्रदेश का कोई राजनेता या नौकरशाह बाढ़ की समस्या का समाधान करना नहीं चाहता क्योंकि यहाँ बाढ़ राहत एक बड़े उद्योग का दर्जा प्राप्त कर चुका है I बिहार के राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए बाढ़ कामधेनु और कल्पवृक्ष के समान है I अनेक लोग तो ईश्वर से मनाते रहते हैं कि हे ईश्वर ! हर साल बाढ़ आए और भीषण से भीषणतम आए ताकि बाढ़ सहायता के नाम पर उनके घर – आँगन में कमीशन की बरसात होती रहे I बिहार में बाढ़ के दिनों में ही सड़कों पर कागजी मिट्टी का भराव होता है ताकि बाढ़ देवी मिट्टी को बहाकर ले जाएं और निरीक्षण आदि के झंझटों से मुक्ति मिले I निरीक्षण अधिकारी भी कमीशन के डोर में बंधे रहते हैं, जैसा कमीशन वैसी निरीक्षण रिपोर्ट I बिहार में बाढ़ के समय ‘गिव एंड टेक कल्चर’ के साक्षात दर्शन होते हैं I वास्तव राजनेताओं और नौकरशाहों के लिए बाढ़ बड़ी कमाई का अक्षय स्रोत है I जब बाढ़ का स्थायी समाधान हो जाएगा तो कमाई का स्रोत ही सूख जाएगा I यहाँ पंचायत से लेकर जिला स्तर तक और प्रखंड से लेकर राजधानी तक बाढ़ सहायता राशि का बंदरबाँट कोई छुपी हुई बात नहीं है I यह ‘ओपेन सेक्रेट’ है I बाढ़ माई ने अनेक कंगालों को मालामाल कर दिया है, अनेक लोगों की तिजोरियां भर दी हैं I राजनेता या नौकरशाह तो चाहते हैं कि हर साल बाढ़ आए और उनकी तिजोरी भरती रहे I अधिक पुरानी बात नहीं है जब एक अभूतपूर्व मुख्यमंत्री के साले को बाढ़ राहत का प्रभारी बनाया गया था तो उसने पूरी बाढ़ सहायता राशि ही उदरस्थ कर ली और डकार तक नहीं लिया I एक जिलाधिकारी पर भी बाढ़ राहत राशि के करोड़ो रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा था, लेकिन उस जिलाधिकारी को किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने वर्ष का ईमानदार व्यक्ति घोषित किया था I
कुछ वर्ष पूर्व गंडक नदी में अभूतपूर्व बाढ़ आई थी – जल प्रलय जैसा दृश्य था I बाढ़ ने पचास वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया था I चारों ओर पानी ही पानी I गांव का नाम माधोपुर था, वैसे नाम में क्या रखा है, नाम तो कुछ भी हो सकता है I माधोपुर तो हर वर्ष बाढ़ के दिनों में टापू बन जाता था I गांव का भूगोल ही कुछ ऐसा था कि बाढ़ के दिनों में दुनिया से अलग- थलग पड़ जाना उसकी नियति थी I गांव के लोग तो बाढ़ और अकाल के अभ्यस्त हो चुके थे परंतु इस बार तो गंडक नदी अपनी सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी I जिस प्रकार भ्रष्टाचार की नदी में ईमानदारी, नैतिकता, मानवीय मूल्य आदि तिरोहित हो जाते हैं उसी प्रकार इस साल की बाढ़ ने माधोपुर की सुख – सुविधा को लील लिया था I नदी का जलस्तर भ्रष्ट और बेईमान मनुष्य की कामना की भांति बढ़ता ही जा रहा था I लोग भूख और बीमारियों से तड़प रहे थे I नदी का तटबंध लोगों के लिए शरणस्थल बन गया था I मुखिया रामनिरंजन प्रसाद, जयलाल काका और केसरी जी की त्रिमूर्ति कई बार प्रखंड और जिला मुख्यालय का दौरा कर चुकी थी परंतु अभी तक शासन से किसी प्रकार की राहत सामग्री नहीं मिली थी I जिलाधिकारी का कहना था कि अभी तक राहत के लिए ऊपर से आदेश नहीं आए हैं I एक सप्ताह बाद ऊपर से आदेश आया और राहत – बचाव कार्य आरंभ हो गया I सरकार ने बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए पचास क्विंटल गेहूं, पांच सौ लीटर किरासन तेल, भोजन के पैकेट आदि दिए I यह भी आदेश था कि पीड़ित परिवारों को दो दो- दो सौ रुपए दिए जाएं I मुखिया राम निरंजन प्रसाद को बाढ़ सामग्री के वितरण का दायित्व दिया गया था I मुख्य राम निरंजन प्रसाद ने दिन के उजाले में प्रत्येक पीड़ित परिवार को ईमानदारीपूर्वक बीस-बीस किलो गेहूं दिए और रात्रि के अंधेरे में रजिस्टर और राहत सामग्री के बीच की दूरियों को पाटने में दल -बल सहित लग गए I रजिस्टर और राहत सामग्री के बीच समीकरण बिठाने में उनका साथ देने के लिए बैठे थे – जयलाल काका, केसरी जी, मास्टर बतासालाल और रामपदारथ I पांच सौ व्यक्तियों के हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान लगाना कोई हंसी-खेल नहीं था I खिड़की से छनकर कुछ आवाजें आ रही थीं-
बदल-बदल कर सभी उंगलियों से निशान लगाओ ………
कल आपूर्ति अधिकारी जांच के लिए आने वाले हैं ……..
काका जरा हल्के निशान लगाओ………
भेद खुलने ना पाए …….
सुबह तक रजिस्टर तैयार था I आपूर्ति अधिकारी आए I उनके स्वागत का पूरा इंतजाम था I मिठाई, मुर्गा, मदिरा I उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा- “माधोपुर ग्राम पंचायत के कर्मठ और ईमानदार मुखिया राम निरंजन प्रसाद की देखरेख में राहत सामग्रियों का संतोषजनक ढंग से वितरण संपन्न हुआ I मैं वितरण से पूर्णतः संतुष्ट हूँ I बाढ़ पीड़ितों के लिए पुनः पचास क्विंटल गेहूं और अन्य सामानों की आपूर्ति की जा सकती है I”
गांव: दृश्य दो
पंचायत का चुनाव नजदीक था I माधवपुर के सभी फुटपाथी और छुटभैये नेता अपनी कूटनीति का कमाल दिखाने में आपादमस्तक डूबे हुए थे I चुनावी चर्चा का बाजार गर्म था I चौक-चौराहे, गली-मोहल्ले, हाट – बाजार सर्वत्र चुनावी गप्पबाजी चल रही थी I गपोड़ियों के लिए मौसम अनुकूल था I बयानबाजी, पोस्टरबाजी, नारेबाजी और कटाक्षबाजी से गांव के नीरस जीवन में रस भर गया था I चुनावी नारों की कवितानुमा जायकेदार भेलपुरी माधवपुरवासियों के नियमित भोजन का अनिवार्य व्यंजन बन गई थी I लोग दाल – भात के साथ चुनावी चर्चा की चटनी खा – परोस रहे थे I सभी पर चुनावी रंग चढ़ चुका था – चुनावी ज्वर से सभी आक्रांत थे I गांव के एक कोने पर राम निरंजन प्रसाद सभा को संबोधित करते तो दूसरे कोने पर दुखहरण सिंह जनता के ज्ञान की वृद्धि करने में लगे रहते I राम निरंजन प्रसाद दुखहरण सिंह को दुख कारण सिंह की संज्ञा से विभूषित करते तो दुखहरण सिंह उन्हें पचास क्विंटल गेहूं खाकर डकार तक नहीं लेनेवाले गरीबों का शोषक और सदी का सबसे सबसे भ्रष्ट ग्राम प्रधान घोषित करते I ग्राम प्रधान के पद के लिए तीसरे प्रत्याशी थे भगेलू राम I तीस वर्षीय नवयुवक, ईमानदार, प्रगतिशील और विकास का आकांक्षी I निर्धन होने के बावजूद जनता की नजर में वह सर्वाधिक उपयुक्त प्रत्याशी था I लोगों का मौन समर्थन भगेलू को प्राप्त था I भगेलू के पक्ष में बह रही मौन समर्थन की हवा को भांपकर दोनों बाहुबली प्रत्याशियों की नींद हराम हो चुकी थी I चुनाव के एक सप्ताह पूर्व राम निरंजन प्रसाद और दुखहरण सिंह दोनों एक नई रणनीति के अनुसार कार्य करने लगे I दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई I बातचीत के सूत्रधार थे मास्टर बतासा लाल जो हर हाल में दुखहरण बाबू को विजयी देखना चाहते थे I दुखहरण बाबू बतासा लाल की कूट बुद्धि के बल पर विजयश्री मिलने की शत-प्रतिशत आशा लगाए हुए थे I मास्टर बतासा लाल ऐसे तिकड़मबाज इंसान थे जो अपने छोटे- छोटे स्वार्थ के लिए बड़ी – बड़ी दुर्घटनाओं को अंजाम दे सकते थे I उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा I उसने सवर्ण – अवर्ण के विवाद को खूब हवा दी I गांव के सवर्णों की बैठक बुलाई और सवर्णों के मस्तिष्क में यह बात बैठा दी कि यदि दोनों सवर्ण उम्मीदवार मैदान में डटे रहें तो भगेलू की जीत सुनिश्चित है I इसलिए निवर्तमान मुखिया राम निरंजन प्रसाद को मैदान से हट जाना चाहिए I गाँव के सवर्णों ने राम निरंजन प्रसाद से आग्रह किया कि वे दुखहरण सिंह के समर्थन में मैदान छोड़ दें परंतु राम निरंजन प्रसाद घाघ किस्म के व्यक्ति थे I उन्हें अपनी जीत की रत्ती भर भी उम्मीद नहीं थी लेकिन ग्राम प्रधान के परम प्रतापी पद पर आसीन होने के लिए अंतिम सांस तक लड़ाई जारी रखना चाहते थे I
चुनाव के तीन दिन पूर्व ……….!! रात्रि के दस बज रहे थे I माधवपुर गहरी नींद में सोया था I कभी -कभी गांव के आवारा कुत्ते रात्रि में खलल डालते और गांव में एक गहरा मौन व्याप्त हो जाता I रामनिरंजन प्रसाद अपनी कोठरी में करवटें बदल रहे थे – उनकी नींद उड़ चुकी थी I अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई I ‘कौन’ की प्रश्नवाचक उक्ति के साथ उन्होंने दरवाजा खोला I सामने बतासा लाल खड़े थे और अपनी बतीसी दिखा रहे थे I देर तक दोनों में गंभीर वार्ता होती रही और दोनों एक दूसरे के तर्कों को काटते रहे I अंततः कलियुग के कागजी अवतार ने राम निरंजन प्रसाद के तर्कों पर पूर्ण विराम लगा दिया I पैसे की धमन भट्टी के सामने उनका झूठा आत्मविश्वास टिक नहीं पाया, उनके तर्क मोम की तरह पिघल गए I दूसरे दिन गांव के निराकार विद्यालय (दीवार – छप्परहीन) में एक आम सभा हुई I सभा में गांव के सभी स्वनामधन्य पंच, उपपंच, सरपंच, उपसरपंच, प्रपंच आदि उपस्थित थे I राम निरंजन प्रसाद ने दार्शनिक अंदाज में अपना भाषण आरंभ किया-
उपस्थित भाइयों ! मैं विगत 20 वर्षों से आपकी सेवा कर रहा हूं I इस लंबी अवधि में आपने मुझे भरपूर प्यार और सम्मान दिया है I बहुतों का मैंने उपकार किया है और कुछ लोगों का अनजाने में अहित भी हुआ होगा I मैं सभी लोगों से क्षमा मांगता हूं I अब मेरी उम्र अधिक हो गई है, मैं अब राजनीति से संन्यास लेकर ईश्वर की आराधना में शेष समय लगाना चाहता हूं I कल रात मुझे एक दैवी प्रेरणा मिली I ( बतासा लाल मन-ही-मन हंस रहे थे कि कितना घाघ है यह बूढा, रुपए के बंडल को दैवी प्रेरणा बता रहा है ) अब मेरी आंखें खुल गई हैं, आँखों से माया – मोह की पट्टी हट गई है, अब लों नशानी, अब ना नाशैहों I मैं अपनी उम्मीदवारी वापस लेता हूं और निवेदन करता हूं कि आपलोग अपना कीमती वोट कर्मठ और ईमानदार प्रत्याशी दुखहरण सिंह को देकर उन्हें विजयी बनाएं I भाषण समाप्त होने के बाद तो गांव की हवा ही बदल गई I अचानक दुखहरण सिंह के व्यक्तित्व में लोगों को वे सभी विशेषताएं दिखने लगीं जिनसे उनका दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था I चुनाव के दिन लाठियों, बमों और बंदूकों का मुक्त भाव से प्रयोग हुआ I पूर्व नियोजित योजना के अनुसार वोटों की तस्करी हुई I इस तरह माधवपुर में गांधीजी के ग्राम स्वराज्य की कल्पना साकार हुई I दुखहरण सिंह की विजय हुए और भगेलू की अप्रत्याशित पराजय हुई I जय बोलो लोकतंत्र की…….ठोकतंत्र की…..धनतंत्र की ….I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]