हास्य व्यंग्य

बिल्लीतंत्र

बिल्ली का, बिल्ली के लिए और बिल्ली के द्वारा संचालित शासन – व्यवस्था को बिल्लीतंत्र कहा जाता है I यह एक ऐसी शासन – व्यवस्था है जिसमें एक मूर्ख की मूर्खता के सामने हजारों बुद्धिमानों की बुद्धि पानी भरने लगती है, लाखों ईमानदारों पर एक बेईमान राज करता है I यह एक ऐसा शासन तंत्र है जिसमें प्रजा के विकास के नाम पर राजा अपने संपूर्ण विशेषाधिकारों का सपरिवार उपयोग – उपभोग करता है I
प्राचीन काल में ऐसी ही शासन – व्यवस्था चंपतपुर राज्य में थी I उस राज्य के पास एक संविधान भी था जिसमें चूहों और बिल्लियों को विकास के समान अवसर देने की बात कही गई थी लेकिन व्यवहार में सर्वत्र बिल्लियों और कुछ मांसाहारी चूहों का ही एकाधिकार था I उस महान संविधान के लचीले नियमों का लाभ उठाकर बिल्लियां और बिल्लीनुमा चूहे समूचे नियमों -उपनियमों को धत्ता बताते हुए अपनी सुख – सुविधाओं के स्वप्न महल खड़े कर लिए थे I कहने को तो वह जनता के सेवक थे लेकिन इनके जीवन को देखकर राजतंत्र के विलासी राजा लोग भी बौने लगते थे I चुनाव के समय बिल्लियां गरीबी हटाओ के नारे देतीं और इस नारे पर सवार होकर चुनाव की नदी पार कर जातीं I चुनाव जीतने के बाद चूहों की गरीबी दूर करने के नाम पर अपनी और अपनी संततियों की गरीबी दूर करने के राष्ट्रीय कार्यक्रम में पूर्ण मनोयोग से जुट जातीं, सगे-संबंधियों, परिजनों, पालतू चूहों के काल्पनिक – अकाल्पनिक नामों से देशी -विदेशी बैंकों में खाते खोलने और उसमें अरबों की धनराशि जमा करने का महाभियान आरंभ होता, वातानुकूलित बिल्ली महलों, शौचालयों और स्नानागारों को आयातित आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया जाता तथा पुत्रों – पुत्रवधुओं और रिश्तेदारों को ऊंचे पदों पर आसीन कराने की व्यवस्था की जाती I चूहे इन करतबों को देखते और अगले चुनाव में मजा चखाने की बात करते, कहते कि हमारी बिल्ली और हमीं पर म्याऊं I आने दो अगला चुनाव लेकिन हर बार बिल्ली के भाग्य से छींका टूट ही जाता और बिल्लियां पुनः चुनाव की वैतरणी पारकर अपना लोक – परलोक संवारने में लग जातीं I बिल्लियों ने ऐसा बिल्लीतंत्र विकसित कर लिया था जिसमें बिलहीन – बेसहारा चूहे छटपटाते पर कुछ कर नहीं पाते थे I चूहेदानी में फंसना उनकी नियति बन गई थी I
अचानक चंपतपुर के राजनैतिक क्षितिज पर एक भव्य व्यक्तित्व और चंपतपुरीय संस्कृति को प्रतिबिंबित करनेवाली एक महिमामंडित बिल्ली का अविर्भाव हुआ I उसने समाजवाद का एक अभिनव नारा और राजनैतिक गणित का एक नया समीकरण प्रस्तुत किया I उसने घोषणा की कि सदियों से काले चूहे अपमानित, प्रताड़ित और अधिकार वंचित हैं I उन चूहों को शासन – प्रशासन में समान रुप से हिस्सेदारी दी जाएगी I उन वंचित- पददलित चूहों को उचित अधिकार देकर सदियों से चल रहे अन्याय को समाप्त किया जाएगा I सर्वहारा, अपंग, लाचार और बिलहीन चूहों को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा I इस नई बिल्ली में चूहों को एक नई रोशनी दिखाई दी I उसने भारी बहुमत से इस बिल्ली को विजयी बनाया I वर्षों बाद इस राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ I चम्पतपुर को एक नई रानी मिल गई I उसके सत्तासीन होते ही रैलियों और महारैलियों का सिलसिला आरंभ हो गया I चूहे जाति -प्रजाति -उपजाति और रंगों में बंट गए I अलग – अलग प्रजाति के चूहों की अलग – अलग रैलियां होने लगीं I काले चूहे, गोरे चूहे, लाल चूहे, सफेद चूहे, भूरे चूहे, नीले चूहे I रैलियों में भारी भीड़ होती, चूहों की रैलियों में बिल्लियों के भाषण होते, गर्म-गर्म नारे उछाले जाते I परिणाम हुआ कि चूहे आपस में लड़ने – मरने लगे, एक – दूसरे को काटने लगे, घमासान छिड़ गया I बिल्ली रानी ने चैन की सांस ली I चलो, कुछ दिन निर्विघ्न राज करूंगी परंतु बिल्लियों में भी रानी पद के लिए मारकाट शुरु हो गई I रानी के पद पर आसीन होने के लिए अनेक बिल्लियां व्याकुल थीं I सभी स्वयं को योग्यता क्रम में सर्वोच्च समझती थीं I इस कारण से कुछ ही वर्षों के बाद रानी को सत्ता से बेदखल कर दिया गया I उसके बाद एक नई रानी ने पद और गोपनीयता की शपथ ली I उसका नाम बिलवानी था I उनका व्यक्तित्व रहस्यों से आच्छादित था I बिलवानी को कुछ लोग बिल्ली समझते तो कुछ बिलाड़, लेकिन वास्तव में वह क्या थी, इसके बारे में कोई नहीं जानता था I नई रानी ने चंपतपुर में एक नया तंत्र विकसित किया और चंपतपुर को बिल्लियों के लिए मुक्त चरागाह बना दिया I उसके व्यक्तित्व से गरिमा, शालीनता और संस्कृतिप्रियता की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही थी I उसके विशाल महिमामय व्यक्तित्व के सम्मुख अन्य बिल्लियाँ बौनी नजर आतीं I
बिल्लियां मंच से सत्य और अहिंसा के भाषण देतीं और मंच से उतरकर दस – बीस चूहों को उदरस्थ कर जातीं I उसने कुछ स्वस्थ और मोटे चूहों को भी उपकृत कर अपना दास बना लिया था I दो – चार चूहे भी बिलवानी के मंत्रिमंडल में शामिल थे I इन चूहों से चूहा वर्ग को काफी आशाएं थी I बिल्लीवाद के प्रबल पक्षधर इन चूहों ने वादा किया था कि फुटपाथी चूहों के लिए मुफ्त बिल और अनाज की व्यवस्था की जाएगी परंतु हमेशा की तरह इस बार भी चूहा वर्ग की आशाओं पर तुषारपात हो गया I उनके प्रतिनिधि स्वस्थ चूहे बिल्ली वर्ग में शामिल हो चुके थे I ये मंत्री चूहे भी अपने बिलों को सुख और उपभोग के साधनों से भरने लगे, अपने -अपने संबंधियों के लिए नए बिल आवंटित कराने लगे, अपने रिश्तेदारों को अनाज के गोदामों का ठेका देने -दिलाने लगे I धीरे-धीरे चूहे भी बिल्लियों की बिल्लीबाजी समझने लगे थे I बिल्लियां जब मंच से अहिंसा के बारे में भाषण देतीं तो चूहे सावधान हो जाते I वे अब समझ गए थे कि अहिंसा का भाषण देकर बिल्लियां अपने को कुत्तों और बाघों से सुरक्षित कर लेना चाहती हैं I वैसे सुरक्षा के लिए उनके पास साधनों की कोई कमी नहीं थी I वे विशेष सुरक्षा घेरे में रहतीं, बुलेटप्रुफ वाहनों में यात्रा करतीं, आधुनिक कवच धारण करतीं I उनके पास सुरक्षा का एक सबसे आसान और अचूक तरीका भी था – खतरे को भांपकर पेड़ों पर चढ़ जाना जहां न कुत्तों का भय था, न ही बाघों का आतंक I बिल्लियों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि बेईमानी, ठगी, चोरी और छल के अजस्त्र स्रोत से निकलकर आनेवाली पैसा प्रवाहिनी नदियां उनके आंगन रूपी महासागर में आकर विराम पाती थीं I
राज्य के संविधान में अनेक छेद थे जिसका लाभ उठाकर बिल्लियां पूरे राज्य और तंत्र को ठेंगा दिखाते हुए बाइज्जत निकल जाती थीं I वह समाज सेवा की चादर ओढ़कर आत्म सेवा, कुटुंब सेवा, भार्या सेवा और पुत्र -पुत्री सेवा में अहर्निश लगी रहती I उनके पास जनसेवा का ऐसा अमोघ कवच था जो भ्रष्टाचार के बाणों द्वारा बींध नहीं सकता था I सेवक की लोक लुभावनी छवि के छायादार वृक्ष के नीचे उन्हें चूहों के विद्रोह का कोई भय नहीं था I जो मोटे चूहे बिल्लीवाद का विरोध करते, उनके सामने कोई न कोई कमाऊ पद का चारा डाल दिया जाता और उनके विरोध की हवा निकल जाती I बिल्लियों की कृपा दृष्टि जिस पर पड़ती उसके हाथ अलादीन का चिराग लग जाता I उनकी माया न्यारी थी I उनकी कृपा से लंगड़े भी सरपट दौड़ने लगते, गूंगे भी वाचाल बन जाते और बंजर मस्तिष्क वाले भी किसी उच्च पद को सुशोभित करने लगते I सदियों से बिल निर्माण योजना चल रही थी लेकिन बिलहीन चूहों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही थी I चूहे बिल्लियों की बिल्लीबाजी समझते थे पर कुछ कर पाने में असमर्थ थे I कुछ चूहे इस व्यवस्था को वोटतंत्र, लाठीतंत्र, मुद्रातंत्र और जंगलतंत्र भी कहते पर जब अपनी एकता का प्रदर्शन करना होता तो दुम दबाकर भाग जाते I बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए कोई तैयार नहीं था I सभी कहते कि अगले चुनाव में बिल्लीतंत्र का खात्मा कर देंगे I संपूर्ण बिल्लीय विशेषताओं से युक्त बिलवानी के सामने आगामी चुनाव जीतने का यक्ष प्रश्न था I अपने कार्यक्रमों के आधार पर तो उसका जितना संभव नहीं था, इसीलिए उसने बिल्लियों के आगे पड़े हुए लौह आवरण को हटा दिया I यह बिल्लीतंत्र के इतिहास की एक क्रांतिकारी घटना थी I लोहे का पर्दा हटते ही सभी बिल्लियां नंगी हो गईं I ईमानदार और आदर्श समझी जाने वाली बिल्लियां भ्रष्टाचार और घोटालों से लथपथ थीं I इधर चूहों के मल – मूत्र त्याग के लिए एक सस्ता शौचालय नहीं था, उधर बिल्लियों के वातानुकूलित शौचालय से अरबों – खरबों की राशि बरामद हो रही थी I बरामद धनराशि को देखकर चूहे भौंचक थे I वे सोच रहे थे कि आखिर इन सत्ताधारी बिल्लियों के पास ऐसी कौन -सी जादुई छड़ी है जिसके स्पर्श मात्र से मिट्टी भी सोना बन जाती है, सत्ता का कौन – सा व्याकरण इन्हें रातोंरात धनकुबेर बना देता है, गणित के किन सूत्रों के द्वारा इन्हें कल्पवृक्ष को हस्तगत करने में सहायता मिलती है I बहुत कोशिश करने के बाद भी चूहों को इनके उत्तर नहीं मिल सके I चूहे सोचते कि क्या चुनावी गणित के समीकरणों को हल करने से रातोंरात दरिद्रता और अमीरी के बीच की खाई को पाटा जा सकता है ? क्या वोट ऐसा पासपोर्ट है जो गुमनामी के अंधेरे से पलभर में प्रसिद्धि के संसार में पहुंचा देता है ? क्या बिल्लीवादी व्यवस्था में चूहों की सर्वनाशी अवस्था जाति -प्रजाति -उपजाति में बंटे रहने का परिणाम नहीं है ?
चूहे सदियों से तक इन प्रश्नों के हल तलाशते रहे …….!!!

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com