संस्मरण

तपस्या

ब्रोडरिक  बेहद नाटा  और वाचाल था। कक्षा में सबसे छोटा भी था क्योंकि उसका जन्म ३१ अगस्त को आता था। सितम्बर से जब सत्र शुरू हुआ तो वह ६ बरस का हो चुका था इस हिसाब से उसको नयी कक्षा में चढ़ा दिया गया, मगर पैट्रिक का जन्मदिन सितम्बर की बीस तारीख को होता था, अतः उसकी आयु भी छह वर्ष थी साल के हिसाब से. यूं वह आनेवाली बीस तारीख को सात वर्ष का पूरा हो जाएगा।
केवल बड़ा ही नहीं पैट्रिक सबसे लंबा भी था। ब्रोडरिक की उससे पक्की दोस्ती थी। पैट्रिक तोतला था और लड़कों को खूब हंसाता था। अनजान लोग उसका मज़ाक बनाते थे जिसपर छुटका ब्रोडरिक मारपीट भी कर लेता था। अपनी नन्हीं सी देह से जब वह बड़ी काठी के बच्चों से लड़ता तो किसी बन्दर के जैसा चिपक जाता और कंधे पर चढ़कर मारता। बच्चों को यही सब रोचक लगता और वह जानबूझकर इन्हें चढ़ाते थे कि झगड़ा हो। परिचारिकाएं उन दोनों को सज़ा देकर बैठा देतीं बेंच पर। मगर पैट्रिक वहीँ से चेहरे बनाकर हंसाता।
एक दिन मुझे भी लपेट लिया। पैट्रिक रुआंसा मुंह बनाकर आ गया। मैंने पूछा क्या हुआ तो बोला बडी ने मारा है। बडी ब्रोडरिक का छोटा नाम था। मैंने ब्रोडरिक को बुलाकर पूछा तो वह गंभीर गुस्से से बोला कि पैट्रिक ने उसको गाली दी। कहा ब्लॉटलिक। लिक तो गाली होती है। ब्लॉट लिक माने थूक कर चाट।
मैंने कभी नहीं सुना था। मगर विदेशिन होने के नाते जनता की गाली संस्कृति से काफी अनभिज्ञ थी। अतः दोनों को खुले दिल से डाँटा . तिसपर वह गलबहियां डालकर हँसते हुए चले गए। मैं हैरान थी। मेरी सहायिका सब देख सुन रही थी। वह भी होटों में मुस्करा  रही थी। बोली ये दोनों आपको बना रहे थे। पैट्रिक कभी भी गाली आदि नहीं देता। ब्रोडरिक को सब दोस्त बडी बुलाते हैं। ये ब्लॉटलिक ब्रोडरिक के तेज दिमाग की उपज है। अभी से बड़ा मेधावी है।
शाम को उसकी माँ लेने आ गयी। वह दोनों बच्चों को अपने संग लाती और ले जाती थी उसका एक बेटा और भी था डेनिस जो नर्सरी में जाता था। मैंने उसे रोककर सारा मज़ाक सुनाया। तिसपर उसने बताया कि पैट्रिक की माँ उसका ताँतुआ कटवाने के खिलाफ थी हालाँकि डॉक्टर ने दो साल पहले ही कहा था। इसके बाद अक्सर अभिभावकों की पंक्ति में वह मुझे दिख जाती और सर नवाकर हेलो जरूर करती। एक दिन ब्रोडरिक बहुत उदास था। सारा दिन उसकी हंसी नहीं सुनाई दी पैट्रिक भी चुप रहा। शाम को जब माँ आई तो उसने मुझसे मिलना चाहा। सबके जाने के बाद मैंने उसे बुलाया। चाय बनाई और हम बैठ गए। उसकी आँखें बरसने लगीं। अपनी जैकेट उतारकर उसने अपनी बांह दिखाई। उसपर लम्बे लम्बे नील पड़े थे। पीठ पर भी उसे मार पडी थी।  मेरी आँखें भर आईं। वह फिर भी शांत रही।
पूछने पर उसने बताया कि उसका अपराधी उसका पति है। लिलियन एक सभ्रांत परिवार की बेटी थी। पिता आयरलैंड से काम की तलाश में इंग्लैंड आये थे। उनको मजूरी का ही काम मिल पाया। परन्तु कैथोलिक होने के नाते बच्चों के आने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया। अतः दस बच्चे पैदा किये। लिलियन भी जल्दी नौकरी पर लग गयी। मगर पिता की गरीबी के कारण उसकी पढ़ने की इच्छा दबी ही रह गयी। उन पर कबतक बोझ बनी रहती। जल्दी एक दीवार बनाने वाले से शादी कर ली। उसके दिन बदल गए। टेडी अच्छा कमाता था। लिलियन अपने बहन भाइयों को भी कुछ दे आती थी अपनी कमाई में से।
मगर मजदूर वर्ग की आदतें टेडी पर भी हावी होने लगीं। यह लोग मिलजुलकर सरकारी ईंटें बेच लेते थे। एक बार आपस में झगड़ा हो गया तो आपसी दुश्मनी में किसी ने उसको पुलिस के हवाले कर दिया।
चोरी उसने नहीं की थी मगर वह साक्षी था और इसलिए उसे हिस्सा भी मिला था। पकड़े जाने पर उसने दामन बचाना चाहा। बाकी गैंग ने उसी को मुर्गा बनाया। रात को उसके पिछले आँगन में क्रेन की मदद से चुपचाप दो क्रेट ईंटों के उतार दिए। सर्दियों के दिन थे। डबल ग्लेज़िंग के कांच वाली खिड़कियों से कोई आवाज़ अंदर नहीं सुनाई दी। सुबह भी ठण्ड में पिछले हिस्से में कोई क्यूँ जाता।
ब्रोडरिक का बाप रोज की तरह काम पर निकल गया। माँ बच्चों को तैयार करके स्कूल चली गयी। तभी झगड़े के बढ़ जाने से आपस में मारपीट हो गयी और छुरेबाजी में कोई बुरी तरह जख्मी हो गया। बाद में वह अस्पताल में दम तोड़ गया। मरने से पहले उसने सबके नाम पुलिस को दे दिए। तहक़ीक़ात में ब्रोडरिक का बाप पकड़ा गया और लम्बी सज़ा मिली क्योकि उसके घर से ईंटें बरामद हुईं थीं। तभी से वह अपना गुस्सा बीबी पर निकालता रहता है। यह सब बच्चों को नहीं पता, मगर ब्रोडरिक बस यह जानता है कि उसका बाप राक्षस है। वह माँ से कहता है कि जब वह मार पीटकरे तब पुलिस को बुलाकर उसे पकड़वा क्यों नहीं देती। मगर लिलियन रो धोकर चुप हो लेती है। वहशी पति को सहन कर लेती है।
मैं उसका दर्द समझती हूँ। पर पुलिस के अलावा भी ऐसे कई इदारे हैं जो मानसिक व्यथा या गृह क्लेश निपटाते हैं। वह क्यों नहीं उनके दरवाज़े खटखटाती ? लिलियन का उत्तर मुझे रुला गया।
वह बोली कि वह सब सह लेगी मगर अपने दोनों चाँद से बेटों को बिना बाप का नहीं होने देगी। घर अभी भी पति की मजूरी मेहनत से चल रहा है। अपने बच्चों से वह प्यार करता है। ये बच्चे मेधावी हैं और एक दिन अवश्य उसका सपना पूरा करेंगे। वह खुद उन हालातों में पली थी जहां उसका शिक्षा का स्वप्न अधूरा रह गया। इसलिए वह उन बच्चों में उसे पूरा करेगी। मुझे अपनी व्यथा सुनाकर उसने बताया कि उसका यह राज़ कोई और नहीं जानता सिवाय पैट्रिक की माँ के। अतः मुझे भी चुप रहना होगा। कभी कभी उसके चेहरे पर भी काले नीले निशाँ पड़ जाते थे तब पैट्रिक की माँ बच्चों को स्कूल लेकर आती थी।
समय पंख लगाकर उड़ गया। कोई तीन साल के बाद वह एक दिन मिलने आई। उसने बताया कि ब्रोडरिक को वह एक प्रसिद्द प्राइवेट स्कूल की प्रतियोगिता परीक्षा में भेजना चाहती है। काफी तैयारी घर पर ही करवा रही है। उसके पास ट्यूशन के लिए पैसे नहीं हैं, पर बच्चे की योग्यता पर निर्भर है। मैंने उसको अगले दिन आने के लिए कहा। मेरे बच्चे सब विश्वविद्यालय में जा चुके थे। मेरे घर जूनियर विश्वकोश था। मैंने उसे वह दे दिया उसके बच्चों के लिए। वह हज़ारों बार धन्यवाद कहती हुई चली गयी।
जिस स्कूल में वह भेजना चाहती थी वह उसके घर के पास था। उसमे सभी बच्चे लंदन भर के रईसों के पढ़ने आते थे। प्राइवेट स्कूलों की श्रेणी में वह सबसे ऊंची पायदान पर आता है। उसकी फीस इस परिवार की आधी आय पी जाती। मगर अपना ब्रोडरिक अगले साल उसकी योग्यता परीक्षा में प्रथम आया। यही नहीं उसकी फीस माफ़ कर दी गयी और उसे छात्रवृत्ति मिली। कैथोलिक चर्च की ओर से भी उसको एक नियत रकम मिलने लगी, जो उसकी अन्य स्कूली गतिविधियों के लिए काम आएगी।
मैंने समय से पूर्व अवकाश ले लिया था। आज यह बालक कमोबेश पैंतीस वर्ष का होगा। और अवश्य किसी ऊंची नौकरी में होगा।

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]