गाँव के दोहे
कितना मोहक,नेहमय, लगता प्यारा गाँव ।
हनमत-मंदिर सिद्ध है,बरगद की है छाँव।।
रज़िया-राधा हैं सखी,मित्र राम-रहमान।
सारे मिलकर पूजते,गीता और कुरान ।।
जुम्मन-अलगू शेख हैं,बने अभी भी यार ।
संस्कार तो दे रहे,ख़ूब वहाँ उजियार।।
ताल,तलैयां,बावड़ी,हैं अब भी आबाद।
गाँवों में सद्भाव तो,अब भी ज़िदाबाद।।
हमें हमारा गाँव नित,देता है अति प्यार।
हमको वह प्यारा लगे,लगे पूर्ण संसार।।
दीवाली और ईद पर,मिल बाँटें सब भोग।
हर नारी की लाज को,रक्षित करते लोग।।
नहीं प्रदूषण,शोरगुल,शांत दिखे परिवेश।
सारे लोगों में पले,करुणा का आवेश।।
खेत और खलिहान हैं,गाय और गोपाल।
अब भी तो आबाद हैं,पंचायत,चौपाल।।
लोकनृत्य,संगीत है,मस्ती के त्यौहार।
मेरा प्यारा गाँव तो,है मुझको उपहार।।
हरियाली के गीत हैं,अनगिन हैं उद्यान।
ऊँचनीच का भाव ना,है हर इक का मान।।
गाँव हमारा स्वर्ग-सा,है सुख का संसार।
नगरों से बहतर “शरद”,गाँवों की जयकार।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे