थप्पड़
भरे पूरे परिवार वाली अम्मा का जीवन वैसे तो खुशहाल था, पर बड़े बहू – बेटे के पराएपन ने उनको अंदर तक तोड़ दिया था। पत्नी धर्म के आगे बड़े बेटे का मातृधर्म कहीं दब गया था। सीधे मुंह बात करना तो दूर, उनका हालचाल पूछना भी उसे भारी लगता था।
आज वही अम्मा चिरनिंद्रा में सो गई थी। परंपरा अनुसार, मुखाग्नि देने के लिए जैसे ही बड़े बेटे ने कदम बढ़ाया, बड़ी बिटिया भरी आवाज़ में बोली, “रहने दे भाई, जीते जी मां तेरे व्यवहार से तिल तिल के जली है। मां की अंतिम इच्छानुसार, मुखाग्नि छोटा भाई ही देगा।”
मधुभाषी अम्मा की अंतिम इच्छा थप्पड़ के समान गूंज रही थी।
अंजु गुप्ता