गौरैया
गौरैया मैं गौरैया,
छोटी-सी मैं गौरैया,
हर पल कहती रहती हूं,
”शुकराने हे जग के रचैया”.
उसने ही हम सबको रचाया,
अब तक भी है उसने बचाया,
आगे भी वह रखवाला है,
हमने व्यर्थ क्यों शोर मचाया?
गौरैया मैं गौरैया,
छोटी-सी मैं गौरैया,
हर पल कहती रहती हूं,
”शुकराने हे जग के रचैया”.
उसने ही हम सबको रचाया,
अब तक भी है उसने बचाया,
आगे भी वह रखवाला है,
हमने व्यर्थ क्यों शोर मचाया?
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बहुत देर बाद आज चिड़िया या गौरया के दर्शन हो गए .कई महीनों से हम ने तो देखी ही नहीं . कितनी सुंदर लगती है ! और इस छोटी से रचना में आप ने बहुत कुछ कह दिया .
प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. शुक्र है हमारी सोसाइटी में बहुत-सी गौरैया दिखती हैं. आज सुबह सैर करते हुए खड़े होकर उनकी चहचहाहट सुनी, बहुत अच्छा लगा. वहीं खड़े-खड़े यह रचना बन गई. हमारी खिड़की के चौबारे पर भी गौरैया आती है. सर्दियों में बाल्कनी में बैठकर धूप में लंच करते हैं, उस समय भी गौरैया आ जाती है. बड़ा अपनापन लगता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.