धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मैं-बोध में अहंकार बसा है !

देवी दुर्गा हमारी ‘माँ’ है और  कोई भी माँ ‘स्वयमेव’ अभिभावक हैं । उन्हें हमारी आवश्यकता नहीं है । दरअसल, हम ‘नर-नारी’ अपने-अपने स्वार्थसिद्धि के लिए उनकी प्रति समर्पित हैं!

जहाँ तक किसी पूजा-कार्यक्रम के लिए व्यवस्था की बात है, उनके लिए पूजा-समिति होती है, जिनमें कोई भी किरदार हो सकते हैं!

जिसतरह से ‘इलेक्शन’ सामूहिक-प्रयास से सफल और सुफल होता है, उसी भाँति किसी प्रकार के उत्सव या समारोह सामूहिक-प्रयास से ही सफल और सुफल होते हैं !

ऐसे आस्तिकीय-कार्यकर्त्ताओं को ढूढ़ना समिति के कार्यान्तर्गत आते हैं !
यह कहना सरासर गलत है कि अगर ‘मैं’ नहीं होता, तो फलाँ सार्वजनिक कार्य सुसम्पन्न ही नहीं होता ! इस ‘मैं’ बोध में अहंकार बसा है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.