स्त्री-पुरुष दोनों होते हैं एक-दूसरे से शोषण के शिकार !
सिर्फ स्त्रियाँ नहीं, पुरुष भी होते हैं ‘शोषण’ के शिकार ! ऑनलाइन अखबार Making India की संयोजिका, संपादिका और प्रकाशिका माँ जीवन शैफाली ने अच्छा लिखा है- ऐसे एक नहीं कई किस्से हैं, जिसे लोग मेरे इनबॉक्स में शेयर कर जाते हैं, किसलिए? क्योंकि उन्हें चाहिए होती है ममत्व से भरी औरत जहाँ वह एक बच्चा बनकर अपने साथ हुए शोषण को व्यक्त कर भार मुक्त हो सके !
कुछ ऐसी बातें जो वह अपने परिवार जनों को नहीं बता सकते, माँ को नहीं बता सकते कि कहीं पलट कर उसी पर ही आरोप न लग जाए।
बहुत पहले फेसबुक पर ही अपने एक करीबी के साथ हुए यौन शोषण का किस्सा लिखा था, उसकी बहुत आलोचना हुई थी, कई पुरुषों ने यह स्वीकार किया था कि उनके साथ भी हुआ है, तो कइयों ने शोषित पर ही सीधा आरोप लगा दिया था क्योंकि वह अपनी जवानी की दहलीज़ पर था और अपनी ही किसी दूर की बड़ी बहन के द्वारा इस ME Too का शिकार हुआ था।
बस सभी महिलाओं से यह विनती है कि ईश्वर ने जो मातृशक्ति के रूप में तुम्हें गढ़ा है उसको पहचानों. आप चाहे जिस उम्र के हैं, सबसे पहले आपके अंदर जो भाव जगत है वह इसी मातृस्वरूपा की सृष्टि का विस्तार है. आप बहन, पत्नी, प्रेमिका, दोस्त बाद में हैं, माँ पहले हैं. जिस दिन यह बात अप स्वीकार कर लेंगी, उस दिन हर कोई आपको उसी स्थान पर रखकर देखेगा ।
मैं अपनी यात्रा देखती हूँ तो अचंभित होती हूँ, बचपन से ही संयुक्त परिवार में होने के कारण बुआओं के, चाचियों के बच्चों को गोद में संभाला है।
बहुत छोटी थी जब बुआ अपनी बच्ची को लेकर आई थीं, रात बे रात बच्ची रोती तो सबसे पहले मेरी ही आँख खुलती और मैं उसे उठाकर चुप कराकर बुआ को दे देती, आधी रात को जाग कर गोदी में घंटो सुलाए रखती… रात भर लंगोट बदले का काम मेरा ही होता। बुआ जब बच्ची को अपनी छाती से लगाकर दूध पिलाती तो जो भाव मेरे मन में उपजते उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं।
एक बार मैंने बुआ से पूछ भी लिया, बुआ मैं क्यों नहीं पिला सकती ऐसे दूध इसे? बुआ मेरी समझदार थी, बहुत प्यार से समझाया, अभी तुम बहुत छोटी हो, जब बच्चे को जन्म देते हैं तभी माँ की छाती से दूध उतरता है… मैं उन बच्चों को इतना प्रेम देती थी… मैंने कहा देखना एक दिन मेरी छाती से भी ऐसे ही दूध उतरेगा…
बस यही वह भाव रहा जीवन पर्यंत… माँ होना एक भाव है, आप अपने अमृत वचनों से, प्रेम से वही संवेदनाएं पुरुषों को दे सकती हैं, जो एक माँ अपने बच्चों को देती हैं। यह आपको तय करना है कि आप अपने स्तर से उतरकर सिर्फ सुर्खियाँ बंटोरने के लिए यौन को खिलौना बना अभिशाप बनाती हो या उसे प्रकृति की अनमोल देन समझकर जीवन की निरंतरता का वरदान।
यह इसलिए भी कहना पड़ा कि #MeToo कहकर जिसे प्रचारित प्रसारित कर रही हो, उस सिक्के का दूसरा पहलू भी है।कई पुरुष भी इसके शिकार हुए हैं।
आपकी मर्ज़ी के खिलाफ किया गया कोई भी कृत्य शोषण है, यह तो पति पत्नी के बीच भी होता है, किस किस को मुद्दा बनाकर ऐसे सड़क पर ले आओगी.जब ऐसी बातें सड़क पर आ जाती हैं, तो बाज़ारू हो जाती हैं. और बाज़ार सिर्फ पैसा कमाने और गंवाने के लिए नहीं होता, इज्ज़त कमाने और गंवाने के लिए भी होता है. चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों का सम्मान उसके अपने हाथों में है, बशर्ते वे एक दूसरे को भी उतना ही सम्मान दें । आइय,े एक ऐसा ही किस्सा डॉ आलोक भारती के शब्दों में पढ़िए कि यह #MeToo दोनों तरफ से होता है।
तो वहीं डॉ. आलोक भारती लिखते हैं-
कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें समाज ने सिर्फ एक वर्ग के लिए मान्यत कर रखा है व दूसरे वर्ग को बिल्कुल उपेक्षित छोड़ रखा है। बाल यौनाचार भी ऐसा ही विषय है जिसे सिर्फ बालिकाओं के उत्पीणन के रूप में ही जाना जाता है जबकि हकीकत कुछ और भी होती है। अच्छी तरह समझाने के लिए मुझे आपको फ्लैश बैक में ले चलना होगा। चलिए आपको सुनाते हैं एक 12 वर्षीय बालक का खौफनाक हादसा।
उसे साइकल चलाना हवाई जहाज उड़ाने जैसा लगता था। रफ्तार, कट लगाना और मोड़ पर साइकल को सड़क पर लिटा कर टर्न लेना उसका खास शगल था। हर इतवार को वह अपने हमउम्र दोस्तों के साथ अपनी अपनी साइकलों से दूर दूर तक अनजान सड़को व गलियों में साइकिलिंग का लुत्फ उठाते थे।
ऐसी ही गर्मियों की एक दोपहर में सबके साथ चलते चलते उसने अचानक अपनी साइकल एक गली में मोड़ दी जबकि बाकी साथी सीधे सड़क पर चलते रहे। अभी वह आधी गली ही पार कर पाया था कि एक घर के बाहर खड़ी 35-36 वर्षीय महिला ने उसे रुकने का इशारा किया।
क्या बात चाची (उस समय अंकल आंटी कहने का प्रचलन नहीं था।)
कुछ नहीं बेटा मेरे घर पर एक साइकल है उसकी चाबी खो गई है क्या तुम अपनी साइकल की चाबी से उसका ताला खोल दोगे?
जी, अभी लीजिए उसने साइकल स्टैंड पर लगा दी।
अरे अपनी साइकल अंदर ले आओ बाहर से कोई उठा लेगा।
भोला बालक अपनी नई नवेली चाची के कुत्सित इरादे ना भांप अपने इस घर में होने की एकमात्र निशानी को लेकर अंदर चला गया।
एक घंटे बाद जब वह बाहर अपनी साइकल ले कर निकला तब उसके बाल बिखरे हुए व कपड़े अस्तव्यस्त थे। उसका एक एक पग मनो भारी पड़ रहा था। उसके साथ जो हुआ था उसने उसकी आत्मा तक को झकझोर दिया था। आंखो से आंसू वेदना व क्षोभ छलक रहे थे। ऐसी परिस्थिति में उसे किसी फिल्म में देखी मीना कुमारी ही याद आ रही थी जिसने ऐसा कुछ अपने साथ होने पर नदी में छलांग लगा दी थी। अपनी ही नजरों में गिरे उस बालक ने अपनी साइकल गंगा जी के रास्ते पर मोड़ दी। थोड़ी ही दूर जाने के बाद अचानक 3-4 साइकलें उसके आगे आ कर रुक गईं।
अरे तुझे गंगा जी ही जाना था तो हमसे कहा क्यों नहीं।
कहां रह गया था तू?
तुझे हुआ क्या है?
अरे रो क्यों रहा है?
किसी से लड़ाई हुई क्या?
किसी ने तुझे मारा क्या?
इतने सारे सवालो से वह बालक टूट गया और रो रो कर अपने साथ हुए हादसे को बता दिया।
सारे बच्चे हतप्रभ रह गए।
तो तू अब मरने जा रहा है।तू मर जाएगा रुआंसे होकर सब बोले।
हां अब जिंदा रह कर भी करूंगा क्या।
बहुत ही दारुण दुखदाई माहौल था दोस्त की अलविदा का सभी की आंखे नम थीं।
अचानक हममे से जो सबसे सयाना था वह बोला-अरे तू मरे मत।देख ये बात सिर्फ हमलोगों और तुझे ही पता है कि तेरे साथ क्या हुआ।विद्धया रानी की कसम हम लोग यह बात किसी को नहीं बताएंगे और जब हम लोग थोड़े और बड़े हो जाएंगे तब मिल कर उस औरत की पिटाई कर के तेरा बदला जरूर लेंगे पर तू मरना कैंसल कर।
इस तरह बहल फुसहल के उसका मरने का इरादा तो बदल गया पर उसके मन में स्त्रियों की छवि उसके समझदार होने तक विकृत बनी रही।
मासूम बच्चियों के यौन शोषण पर आंदोलन कर संसद तक हिलाने बालों से गुजारिश है कि इस तरह के यौनाचार पर भी कलम चलाएं ताकि इस तरह के व्यभिचार भी चर्चा में आए व समाज में जागरूकता व चेतना आए।मुझे नहीं लगता इस तरह के दुराचार का शिकार वह अकेला बालक है बल्कि इनकी भी संख्या बहुतायत है बस विमर्श का मुद्दा नहीं बना कभी।
उस बालक को तो आप सब पहचान गए होंगे।ऐसे हजारों बालक आपको अपनी बस्ती मोहल्ले कालोनी में मिल जाएंगे पर वह चुप रहते हैं रोते गिड़गिड़ाते नहीं कभी और ना कभी फरियाद करते हैं क्योंकि उन्हे पता है कि कोर्ट कचहरी पुलिस समाज उनके लिए हैं ही नहीं। कोई नहीं खड़ा उनके साथ शायद इसलिए ही इसे वह अपनी नियति मान कर इस संत्रास को जीवन भर ढोने को मजबूर हैं।