वैश्विक खाद्य संकट से प्रभावित देश विदेश भुखमरी का शिकार
वर्तमान में विश्व गरीब और अमीर दो भागों में बंटा हुआ है। सच तो यह है कि अमीर देश लगातार अमीर होते जा रहे हैं और गरीबों की गरीबी बढ़ती ही जा रही है। जब तक यह असन्तुलन खत्म नहीं होगा तब तक गरीबी और भुखमरी भी यथावत रहेगी। जरूरत इस बात की है कि संपन्न देश कमजोर देशों को सभी प्रकार की सहायता निःशुल्क उपलब्ध कराएं तभी इस वैश्विक समस्या पर काबू पाया जासकता है। साथ ही साधन संपन्न लोग भोजन की बरबादी नहीं करें और बचा भोजन गरीब परिवारों को दें। मगर यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। गरीबी कैसे दूर हो यह प्राथमिक बात है। कुपोषण और भुखमरी गरीबी से जुड़ी हुई है। गरीबी दूर करने के सर्वांगीण प्रयास करने होंगे। इसे विश्व स्तर पर सुलझाना होगा तभी हम अपना लक्ष्य हासिल कर पाएंगे। अन्न उत्पादन में आत्म निर्भर बनने के लिए उन्नत कृषि प्रणाली को अपनाना होगा। देश का कृषि उत्पादन बढ़ाकर हम कई मौजूदा समस्याओं पर नियंत्रण पा सकते हैं।
विश्व में आज भी करोड़ों लोग भुखमरी के शिकार हैं। बात चाहे विकासशील देशों की हो या विकसित देशों की,सब जगह हालात कमोबेश एक समान ही हैं। ‘खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए सतत खाद्य प्रणाली’ के उद्देश्य के साथ इस साल फिर से हम इस दिवस को मनाने जा रहे हैं लेकिन मंजिल अब भी दूर ही नजर आ रही है। हर वर्ष अलग-अलग थीम के साथ मनाए जाने वाले इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था दुनिया में भुखमरी खत्म करना। लेकिन इस कार्यक्रम की शुरुआत के इतने साल बाद, आज भी दुनिया के करोडों लोगों को हम दो वक्त की रोटी मुहैया नहीं करवा पाए हैं।
भूख से लड़ने में दुनिया भर में हो रहे प्रयासों के बीच भारत की एक तस्वीर यह भी है कि गोदामों में सड़ते अनाज के बावजूद करोड़ों लोग भूखे हैं। उभरती हुई अर्थव्यवस्था, भारत की इस तस्वीर का कारण भले ही जो भी हो, विशेषज्ञों का मानना है कि इसका परिणाम देश की छवि धूमिल होने के तौर पर ही सामने आएगा।
‘कृषि प्रधान’ देश भारत में लोग भूख के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं, हमारे पास किसी भी विकासशील देश से ज्यादा कृषि योग्य भूमि है, लेकिन कृषि के साधन और कृषि करने वालों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे प्राकृतिक और युवाओं का कृषि से मोहभंग होकर किसी आसान तरीके से पैसा कमाने की ओर रुझान होना भी इसके लिए जिम्मेदार है। दुनिया में जितने लोग भुखमरी के शिकार हैं, उनमें से एक चौथाई लोग सिर्फ भारत में रहते हैं। इस सूची में भारत को ‘अलार्मिंग कैटेगरी’ में रखा गया है। इसमें भयानक गरीबी झेलने वाले इथोपिया, सूडान, कांगो, नाइजीरिया और दूसरे अफ्रीकी देश भी शामिल हैं। इससे भी हैरतअंगेज बात यह है कि अपने देश में 5 साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चे हर साल कुपोषण का शिकार होकर मौत का ग्रास बनते हैं। भुखमरी के मामले में हम हमारे हालात कई पड़ोसी मुल्कों से भी बदतर है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हम कहां खड़े हैं और किस और जा रहे हैं। एक तरफ हम खाद्य सुरक्षा की बात कर रहे हैं। भारत निर्माण की बात कर रहे हैं। भविष्य में आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने देख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह रिपोर्ट हमें देश की सच्ची तस्वीर को बयां करने के लिए काफी है। जो हमारे सारे सपनों को मिनटों में ही चकनाचूर कर देता है।
एक तरफ दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों के घरों में,होटलों में,शादी-ब्याह और पार्टियों में बहुत ज्यादा खाना बर्बाद होता है और फेंक दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जिनको एक जून की रोटी के भी लाले पड़े हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्व की आबादी 2050 तक नौ अरब हो जाएगी। जिसमें करीब 80 फीसदी लोग सिर्फ विकासशील देशों में रहेंगे। ऐसे में भुखमरी की समस्या पर कैसे काबू पाया जाए,यह सबसे बड़ा प्रश्न अब भी बना हुआ है?
— प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”