निद्रा से स्वप्न तक की यात्रा
निद्रा और स्वप्न का ज्ञान बड़ा रोचक है। हम रोज़ाना सोते हैं, पर हम कभी अपनी निद्रा को नहीं समझ पाते, उसे जान नहीं पाते, यह बड़ी विडंबना की बात है। यह ऐसे ही है जैसे किसी व्यक्ति के पास लाखों करोड़ों रुपये हों पर उसे उन्हें खर्च न करना आता हो और जो बड़ी दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत कर दे। अथवा जैसे किसी व्यक्ति के सामने छप्पन भोग हो पर उसे यह समझ ही न हो की वह भोजन है और उसे कैसे खाते हैं, और वह भूख से मरा जा रहा हो।
ऐसा ही हमारे जीवन के साथ है, हम सोते हैं पर हम निद्रा को नहीं जान पाते हैं। हम स्वप्न देखते हैं परन्तु स्वप्न क्या है, इसकी हमें कोई समझ नहीं होती है। यदि हम एक भी चीज को पकड़ कर बैठेंगे तो हम सो नहीं सकते। हमारी सभी पहचान, पुरुष-महिला, अमीरी-ग़रीबी, बुद्धिमानी-बेवकूफी, सब कुछ नींद में छूट जाती है। गहरी नींद में अमीर-गरीब, महिला-पुरुष का कोई अंतर नहीं रहता, हम अपनी सभी पहचान छोड़ देते हैं। हमारी सभी पसंद-नापसंद भी निद्रा में छूट जाती है। हम नींद में किसी को साथ भी नहीं ले जा सकते चाहे कोई हमारा कितना भी प्रिय क्यों न हो।
निद्रा में तुम अपनी सभी पहचान, राग-द्वेष, पसंद-नापसंद से परे होते हो, तुम्हें उन सभी को छोड़ना ही पड़ता है। जैसे तुम सब कुछ छोड़कर निद्रा में कुछ भी नहीं करते, केवल विश्राम करते हो, वैसे ही ध्यान में भी तुम सब क्रिया कलाप छोड़कर, पूर्ण विश्राम करते हो।
ईश्वर के लिए और अपने स्वयं के भले के लिए हम ध्यान में कुछ भी नहीं करते हैं। ध्यान में भी निद्रा के जैसे ही सब छोड़ देने से समाधि घटती है। अज्ञानी लोग अपने स्वप्न को यथार्थ में बदलना चाहते हैं परन्तु आत्मज्ञानी इस संसार की वास्तविकता को भी स्वप्न जैसे ही जानते हैं। स्वप्नों की विवेचना(विचार-विमर्श) करना बहुत बड़ा अज्ञान है, इस जीते जागते संसार का स्वप्न मात्र होने का एहसास ही आत्मज्ञान है।
स्वप्न का ज्ञान और सत्य के प्रति जागरूकता
तुम्हारा मन अधिकतर सपने में ही तो रहता है, या तो गहरी निद्रा में सो जाता है या स्वप्नावस्था में रहता है। कभी दिन में सपने देखता है कभी रात में, हवा में महल बनाता और बिखेरता रहता है, यही सिलसिला अधिकतर चलता रहता है। पर जिस भी क्षण तुम यह जान लेते हो कि अरे! यह तो सपना है। उसी क्षण एक सजगता आ जाती है, उसी क्षण ही तुम पूरी तरह से जीवंत होते हो, जागे हुए होते हो। बाकी समय निद्रा जैसी अवस्था बनी रहती है परंतु जैसे ही यह जाग्रति आ जाए कि अरे मैं तो गहरी नींद में था, तुम जाग उठते हो।
पतंजलि इस सूत्र में बड़ी सुंदरता से कहते हैं कि निद्रा का ज्ञान होते ही तुम जाग जाते हो। जब भी कोई सो रहा होता है, उसे यह पता ही नहीं होता कि वह सो रहा है, जिस क्षण में वह जानते हैं कि यह निद्रा थी, वो सो रहे थे, उसी क्षण वह जाग चुके होते हैं। जैसे कोई व्यक्ति दिन में सपने देखते हो, तब उन्हें पता नहीं होता की वह दिन में सपने देखते हैं। जैसे ही उन्हें यह पता चलता है की अरे मैं तो सपने देख रहा था, तुरंत उसी क्षण में वो जाग चुके होते है।
कभी कभी जब तुम क्रिया प्राणायाम करते हो और उनका कुछ प्रभाव न दिखता हो तब अपने आप से पूछो, कि क्या तुम यह करते समय कुछ कल्पना करने, दिन में सपने देखने में लगे थे या निद्रा में चले गए थे – क्योंकि यही दो संभावनाएं हैं, कोई तीसरी संभावना नहीं है।
यदि तुम दिन में सपने देख रहे हो, तब कितना भी क्रिया प्राणायाम का कुछ प्रभाव नहीं होता है। प्राणायाम करते समय भी मन अपने ही सपनों के उधेड़ बुन में लगा रहता है, अरे मैं इस देश का राष्ट्रपति बन जाऊंगा। मन ऐसे ही सपनो में लगा रहता है, इसीलिए राजनीतिक लोगों के लिए साधना में बैठ पाना बड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि मन निरंतर नए सपने बुनता रहता है और उन्हें इसका होश भी नहीं होता कि वह दिन में कोरे सपने मात्र देख रहे हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं है। स्वप्न और निद्रा का ज्ञान हो जाना भी उसी क्षण में तुम्हें सत्य के प्रति जागरूक कर देता है।
— प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”