गीतिका/ग़ज़ल

अहसान करके वो जताते रहे

अपना कह कर के वो मुझे आजमाते रहे,
ज़ख्म वो देते गए और हम मुस्कुराते रहे!
ख्वाब शीशे की तरह टूटे सब के सब मेरे
मरुस्थल में नदी बन अश्रु हम बहाते रहे!
थी ग़मों की आंधियाँ यूँ चारो दिशाओं से
 अदने दीप की तरह हम टिमटिमाते रहे!
गया था उनकी बज्म में ग़म सभी मैं भूलने
अपनी ही महफ़िल में मुझे वो रुलाते रहे!
उनका अहसान जीते जी ना लूंगा मैं कभी
अहसान करके वो कम ज़र्फ, जताते रहे!
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616