कविता

लोग भूख से मरते हैं

कदमों को वहां ले चलो,
जहां कदम कभी नहीं पड़ते हैं।
और देखो बड़ी-बड़ी होटलों के पीछे,
छोटे टूटे-फूटे घरों में,
जहां बच्चे भूख से बिलखते हैं।
हम पार्टियों और जश्नों में,
कितना अनाज यूं ही जाया करते हैं।
वहीं फुटपाथ पर बैठे लोगों को देखो,
जो एक निवाले को तरसते हैं।
हम समझदार होते हुए भी,
अन्न की कद्र कहां करते हैं।
जरा सोचो उनके बारे में,
जो लोग भूख से मरते हैं।
— अंकिता जैन ‘अवनी’

अंकिता जैन 'अवनी'

लेखिका/ कवयित्री अशोकनगर मप्र jainankita251993@gmail.com