कविता

बादशाह हो

बादशाह हो तो,
बादशाही का मान रखो,
अपने गुरुर को छोड़ो
और हृदय में विनम्रता का स्थान रखो।
ताज समक्ष झुकते हर बार,
इस बार किसी पगड़ी की आन रखो,
बादशाह हो तो, बादशाही का मान रखो।
तुम्हें रिझाना,
हर रुपवती चाहती है।
पर तुम पुरुषोत्तम हो तो,
अपने चरित्र का भान रखो,
कोई तुमसे क्यों प्रेम करता है?
हृदय किसी का पढ़ सको,
 ऐसा ज्ञान रखो,
बादशाह हो तो बादशाही का मान रखो।
कौन तुमसे क्यों चिढ़ता है?इस पर नहीं,
कौन तुम्हारी मदद कब चाहता है,
इस पर कान रखो।
चापलूसों,स्वार्थियों को महत्व देते हो,
तो अब निस्वार्थ लोगों का ध्यान रखो।
बादशाह हो तो बादशाही का मान रखो।
— अंकिता जैन ‘अवनी’

अंकिता जैन 'अवनी'

लेखिका/ कवयित्री अशोकनगर मप्र jainankita251993@gmail.com