क्या ‘रावण दहन’ की परंपरा जारी रखनी चाहिए ?
अमृतसर के निकट चौड़ा बाज़ार के जोड़ा रेलवे ढाला के समीप 19.10.’18 की शाम एक बड़ी रेल-हादसा हो गई, जिनमें 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जो कि रेल-यात्री नहीं थे! अपितु, बड़ी तादाद में ये लोग उस स्थान में हो रहे रावण -कुंभकर्ण- मेघनाद की वध व जलाये जाने की हर वर्ष की पारंपरिक-रस्म निभाई जा रही थी, के लिए जुटे थे!
हम इसतरह के किसी भी कुप्रथा के पक्ष में कैसे रह सकते हैं, आप ही बताइए! क्योंकि हर वर्ष इस आयोजन में दुर्घटनाएँ हो ही जाती हैं। पटना के गाँधी मैदान में कुछ वर्ष पीछे इसी आयोजन में हुई भगदड़ में कई लोगों ने प्राण गंवाए थे !
क्या इस जैसे कुपरम्परा को बंद किये जाने के कोई माई-बाप नहीं है? हमारे आंदोलन ने पति के साथ जीवित जलनेवाली विधवाओं को ‘जीवन’ दिया और इस मानसिक-विकृति लिए कुप्रथा को रोकी ! फिर इस जैसे कुपरम्परा को क्यों नहीं रोक रहे हैं!
यह रेल-हादसा, जालंधर से अमृतसर को तेज रफ्तार से जा रही ट्रेन की चपेट में बड़ी तादाद में आए लोगों को लीलने की रही ! दो ट्रेन के वहां से गुजरने के कारण पटरी से हटने हेतु वे सभी मृतक और घायल असमंजस में रहे, जो रावण-दहन को देखने आए थे और भीड़ बढ़ जाने के कारण रेल-पटरी पर चढ़ गए थे !
यह रेल-दुर्घटना में महज 10 से 15 सेकेंड लगे! ट्रेन के गुजरते ही पटरी के दोनों तरफ क्षत-विक्षत शव दूर-दूर तक बिखर गए और घायलों की चीख-पुकार मच गई। इसमें किसी को दोषसिद्ध कर सरकार और प्रशासन दायित्वमुक्त नहीं हो सकते !
क्या हम अपनी कुपरम्परा को जारी रखने में पुनर्विचार नहीं कर सकते ! 60 से अधिक मृतकों और 100 से अधिक घायलों, जिनमें कई के अंग-भंग हुए हैं ! सच में, इस हृदयविदारक-घटना से शरीर का रोम-रोम काँप उठा है! मृतकों को श्रद्धांजलि देते हुए, घायलों और दोनों के परिजनों तथा प्रियजनों के प्रति हमारी संवेदनाएं अतिशय दुःख के साथ समर्पित है!