सामाजिक

न्याय

जब एक संतान जन्म लेती हैं उसी वक्त से माता-पिता के जीवन का नया अध्याय आरंभ हो जाता है | वह बड़ा ही सुखद अनुभव होता है | वे अपनी संतान के प्रति सारी जिम्मेदारियां सारे कर्तव्य बड़ी ही निष्ठा से पूर्ण करते हैं | वे स्वयं भूके रह जाएंगे ,परंतु कभी भी अपनी संतान को कोई भी कमी का आभास नहीं होने देंगे | वह अपनी सारी खुशियां अपने सारे सुख व चैन अपना सर्वस्व अपनी संतान के लिए त्याग कर देते हैं | इतने कठिन तप के पश्चात भी माता पिता का अधिकार अपनी संतान के प्रति केवल 18 वर्षों तक ही सीमित रहता है | मेरा कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश का कानून कहता है ,जब व्यक्ति 18 वर्षों का हो जाए उसी क्षण से उसे अपने निजी फैसले स्वयं तय करने का अधिकार है | यहां बिल्कुल सही बात है कि हर मनुष्य को अपने निजी जीवन के प्रति निर्णय लेने की आजादी होनी चाहिए | परंतु आज कल मनुष्य अहंकार व लालच से भर चुका है | उसे केवल अपने निजी स्वार्थ पूर्ण करने होते हैं |

माता पिता सारा भार अपने कंधे पर रखे सारे दुखो से लड़ जाते हैं | ताकि उनकी संतान सुखी जीवन व्यतीत करें | परंतु कहीं सारे ऐसे लोग है जो अपने माता पिता का सम्मान नहीं करते | बड़ी ही दुख की बात है ,सोशल मीडिया में हर जगह मदर्स डे यह फादर्स डे पर हर एक मनुष्य अपने माता पिता की फोटो लगाते हैं | और उस फोटो के नीचे कहीं सारे अच्छे अच्छे वाक्य लिखते हैं | अपनी माता-पिता का बड़ी ही सरलता से विवरण करते हैं | हर जगह स्टेटस लगाते हैं | काश जितना प्यार और सम्मान वह सोशल मीडिया में दिखाते हैं यदि उसका आधा हिस्सा भी अपनी असल जीवन में अपने माता-पिता को दे , तो जीवन कितना सुखम होगा | दिखावे का प्यार पूरी दुनिया को दिखाते हैं परंतु वास्तव में अपने ही माता-पिता के प्रति कोई भी प्यार , सम्मान व सच्छी निष्टा उनके मन में है ही नहीं |

पूरे ब्रहमांड में ऐसे कोई भी माता-पिता नहीं है जो अपने बच्चों का बुरा चाहते हो | पर आजकल की पीढ़ी अपने परिवार के साथ लगाव बहुत कम हो गया है | 18 के होने के बाद मनुष्य को अपने जीवन में निर्णय लेने का अधिकार अवश्य है परंतु ,किसी के भी साथ छल करने का नहीं है | किसी को धोखा देने का नहीं है| या फिर किसी को ही अत्यंत पीड़ा पौछा ने का अधिकार किसी भी मनुष्य को नहीं दिया गया है | कहीं सारे ऐसे लोग है जो अपनी निजी स्वार्थ पूर्ण होते हैं अपने ही माता-पिता को व अपने ही परिवार को छोड़ कर चले जाते हैं | उनकी माता-पिता ही उन्हें बोझ लगने लगते हैं | और उस माता-पिता के साथ जो विश्वासघात होता है उसका न्याय कोई भी कानून, कोई भी अर्थव्यवस्था या कोई भी समाज नहीं करती | बल्कि पूरा समाज उन्हें और पीड़ा देने में लग जाता है | जो माता-पिता दिन-रात परिश्रम कर, कठिन तपस्या कर अपनी संतान के लिए सारी सुखों का प्रबंध करते हैं | अंत में उनके साथ इतना बुरा व्यवहार होता है | उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुंचाई जाती है | और कहीं संतान तो अपने बुजुर्ग माता पिता को अनाथ आश्रम तक छोड़ आते हैं | वह बड़े ही मजे से उनकी कमाई हुई धन-दौलत साहब पर अधिकार जताते हैं | काश अपने ही माता-पिता की पीड़ा पर भी उन्हें अधिकार जताना आता | और बिचारे माता पिता अपनी ही औलाद के दुखों से स्वयं को इतना विवश और बेसहाय महसूस करने लगते हैं | और उनके दुखों को कम करने हेतु कोई भी कानून या कोई भी समाज उपस्थित है ही नहीं | उनकी साथ हुए छल के प्रति कोई आवाज नहीं उठाता | और जो संतान अपने माता-पिता अत्यंत पीड़ा पहुंचाए वह कभी भी सुखी जीवन व्यतीत कर ही नहीं सकती |

— रमिला राजपुरोहित

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा