अहंकार
अहंकार जब मनुष्य पर चढ़ जावे
वहां हो जाए सबसे न्यारे |
मात-पिता भी ना बिना उनको भाए
बहनों का हाथ वह कैसे थमाएं |
भाई को बिना समझे कुछ भी
औकाद तेरी क्या है मुझ बीन |
दर्द से स्वयं वह झूलते जाए
औरों को भी पीड़ा पहुंचाए |
चेहरे पर जो इतना इतराए
मन सदैव अशांत वो पाए |
अपने भीतर की पवित्रता को
क्रोध में ही नष्ट कर जाए |
है मेरी यही विनती
अहंकार की ना रखो दृष्टि |
मनुष्य जन्म हम इसलिए पावे
ताकि सबको सुख दे पाए |
— रमिला राजपुरोहित