भजन/भावगीत

देवी भक्ति- गीत

(नवरात्रि पर भक्तों की गुहार सुनकर माता रानी जब धरा पर आने को तत्पर हुई तो स्वर्गलोक और कैलाश स्थित शिव परिवार पर क्या बीती? उसकी सुन्दर कल्पना के चित्रण का प्रयास किया है।)

चली भवानी सिंह पर चढ़के अब भक्तों के देश
कोई राह बुहारो रे,!
आँखों में है प्यार बरसात, और प्यारा है भेष
ज़रा नज़र उतारो रे!!

सुर-गंधर्व मना सब सारे,
बाल गजानन ठाड़े द्वारे
मूष-मयूर भये अति ब्याकुल,
मन ही मन कुछ गुन के चातुर
पैंया परत गणेश
कोई राह बुहारो रे! 1।

वीरानी कैलाश पे छायी
मानसरोवर ले अंगड़ाई
नंदी-नाग डरे, फुफकारे
भूत-पिशाच पाँव परे,हारे
भांग चढ़ाकर सुध-बुध बिसरे
बिनती करत महेश,
कोई राह बुहारो रे,! 2।

सूरज लाल, बाल पर झूमे
कमल-चरण, जग-लोचन चूमे
मेघ सिमट कुंतल में छाये
तारे हार गले बन आये
मुख पर चाँद उतर आ दमका
संग पिता शैलेष
जरा राह बुहारो रे! 3।

ताल-नदी मिल चरण पखारे
बरखा आतुर नैन निहारे
‘शरद’ बिछाये पलक धरा पर
अंबर ओस सजा धरती पर
नाच रहा परिवेश
जरा राह बुहारो रे !4।

रुकना ना जगदंब-भवानी
धर तलवार चलो महरानी
गगन सकल दिक्-दिग्गज डोले
पवन-अनल,सागर जय बोले
सिंहों के रथ पर चली आओ
त्राहि-त्राहि चहुँ ओर मचाओ
गद्दारों का काल बनो माँ
आतंकों को लील चलो माँ
असुरों को संहार के भैया
हर लो सभी कलेष
कोई राह बुहारो रे,! 5।

— शरद सुनेरी