विज्ञान तर्क को मानता है और मैं आस्थावान धार्मिक नहीं हूँ, निराला जी । आपने मेरे यहाँ कई वर्ष समय बिताया है । मैंने 25,000 से अधिक पुस्तकों का अध्ययन किया है, इसलिए तार्किक हूँ, और सोशल मीडिया के माध्यम से अपना तर्क को रखता हूँ और मैं तो अदना-सा तर्ककार भर हूँ ! यह जानना-पहचानना क्या है ?
आपके कमेंट पर कोई हस्तक्षेप करेगा, तो उसे कहेंगे ‘मुझे जानते नहीं’ ! किसी के पोस्ट पर तर्क दीजिये, स्वमेव आपको जान जाएंगे ! उपनाम के अनुसार ‘निराली’ अंदाज़ भी रखिये ! …. और हाँ, जावेद जी अच्छे चित्रकार और शायर भी हैं तथा मेरी उम्र के हैं ! जब सोशल मीडियापर बात हो रही है, तो तर्क या कुतर्क यहीं रखिये ! अलग से मिलना जैसे प्रश्न मुझे ऐसा लगा, जैसे कोई कह रहे हैं ‘हम आपको देख लेंगे’ !
मित्रता दोनों तरफ से होती है । विकट संकट में भी मित्रता कायम रखना दोनों का दायित्व है ! आप सम्भवत: 1997 में मैट्रिक किए हैं, तो छोटे है ही ! इसमें दो राय नहीं ! मेरे तरफ से मित्रता कायम रहेगी ! आपकी बात के लिए आपकी मर्जी ! विचार जहाँ सेट नहीं करें या तर्क से विमुख होना और इसपर आप कमेंट करते हैं या नहीं ! ये तो आपकी मर्जी है, इसपर मैं क्या कह सकता हूँ ?