अनिश्चितता
आज मैं बड़े असमंजस में हूँ ,
सोचती हूँ क्या कहूँ,
यही सोच रही हूँ कि
हम अभावों को कैसे समझ पाते?
कुछ प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से,
कभी अनमने मन से,
कभी वास्तविकता में,
हम यादों के झरोखों से झाँक आते!
ऐसा प्रतीत होता मानो
अनिश्चितता ही एक मात्र नियम है,
सभी वस्तुओं का प्रारम्भ व अंत है,
उसी प्रकार जैसे खिले हुए पुष्प मुरझाते!
कुछ लुप्त हो जाता है,
कुछ स्वयं मिट जाता है,
और बीतते समय के साथ
हम भी जीवन में आगे बढ़ते जाते!
— रूना लखनवी