कहने को मन करता है
बहुत कुछ कहने को
मन करता है,
पर कामुक तन
धन त्यागता है ।
यह प्रसंग लिए है,
कुछ भी अप्रासंगिक नहीं है,
दिवास्वप्न के रंगी-संगी
कट्टरता के मोहपाश से परे
यह कहीं भी अप्रतिबद्ध है !
यह कैसी अदा है ?
कुछ भी खुदा नहीं है,
आशा के साथ-
कर्म ही पूजा है,
इसके इतर
नहीं कोई दूजा है !
रंजीत महाराज ने
दिए जवाब शाहशुजा को !
मिट या अमिट
मीत या अमित !
कई प्रसंग में
एक-एक क्षण-क्षण
प्रतिपल, प्रतिक्षण
आगंतुक विस्तारण के
आलोक में !
कौन किस करवट बैठता है
ऊँट या कोई और !