कविता

चिलमन

अब हया दिखती कहाँ है?
रिश्तों में हया मर रही है,
सिर्फ परदे के रुप में
खिड़की दरवाजों पर ही
दिख रही है।
जबसे आधुनिकता का भूत
चढ़ा है लोगों पर
सारी हया हवा हो रही है।
क्या पता कब हया
इतिहास बन जाये,
चिलमन भी इतिहास बन
नाम दर्ज करा जाये।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921