कविता

ठंढ के दिन आये

ठंढ का दिन
धीरे धीरे आ रहा है,
कंबल,रजाई, स्वेटर, जैकेट
टोपी, मफलर अब
निकलने लगे हैं।
गाँवो में तो अब
अलाव भी जलने लगे हैं।
घर/आफिस/दुकान/प्रतिष्ठान में
पंखे विश्राम की मुद्रा में आ गये हैं।
बुजुर्ग साल,स्वेटर में आ गये हैं,
बच्चे अभी नखरे दिखा रहे हैं।
अब सबको सचेत रहने की
जरूरत है भाई,
क्योंकि ये मौसम अपने साथ
बीमारियाँ भी ला रहे हैं,
ठंढ के मौसम जो आ गये हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921