उम्मीद तो है
कौन यहाँ आता है ,
कौन मुँह छिपाता है ।
कौन आकर पल दो पल
पास बैठ जाता है।
सुनता है कुछ मेरी
और कुछ सुनाता है।
माना कि सपना है
कुछ भी ना अपना है
फिर भी मन बुलाता है
हौले से मन ही मन
गीत गुनगुनाता है।
सपना सच हो जाये
मन से यह मनाता है
मेरा मन पगला है
पगली के सपनों को
रोज रोज नये नये
पंख लगा जाता है।
— लता यादव