कविता

यादें

यादें कभी रुलाती हैं।
कभी गुदगुदाती हैं ।
कभी मीठी लोरी बन
धीरे से सुलाती हैं ।
माँ की मधुर याद,
जबभी आती है ।
चाँदी से बालों पर,
मुरझाये गालों पर,
हौले से थपकी दे
प्यार से सहलाती है ,
निःशक्त हाथों से
आँचल में भर कर ,
जीवन की संध्या में
जीवन को जीने का
अर्थ देजाती है।

कभी किनारा ढूँढते रहते थे हम,
अब किनारे से किनारा कर लिया।
मुट्ठी में सिमट आई ज़िन्दगी मेरी ।
छोड़ना सबको गवारा कर लिया ।

— लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है