यादें
यादें कभी रुलाती हैं।
कभी गुदगुदाती हैं ।
कभी मीठी लोरी बन
धीरे से सुलाती हैं ।
माँ की मधुर याद,
जबभी आती है ।
चाँदी से बालों पर,
मुरझाये गालों पर,
हौले से थपकी दे
प्यार से सहलाती है ,
निःशक्त हाथों से
आँचल में भर कर ,
जीवन की संध्या में
जीवन को जीने का
अर्थ देजाती है।
कभी किनारा ढूँढते रहते थे हम,
अब किनारे से किनारा कर लिया।
मुट्ठी में सिमट आई ज़िन्दगी मेरी ।
छोड़ना सबको गवारा कर लिया ।
— लता यादव