गुनाह के तले
उनमें यह साफ परिलक्षित है
कि जीवन सयानी है
या खास अवबोध के तत्वश:
अविरत अविगत अनुतनायी
साहस के परिनिधित:
साहसी विगलता के सहारे
साहस के चयन के सापेक्ष
आक्षेप आघूर्णित है
या समंदर किनारे
कोई वायलिन बज रहे हो
या सुतारे पर बल आघूर्ण
आकर्षित हो
या जीती-जागती झुनझुनाहट !
यह खास हो,
वास हो,
आभास हो,
हास हो
या परिहास हो !
सूत्रण के परिमार्जित
उनमें भाव या अभाव
विकसित हो
या संश्लेषित !
यह तो होंगे,
मन के संगे !
घटेंगे, बढ़ेंगे !
….और कभी-कभी
गुनाह के तले
गुनाहगार को खोजेंगे !