अपना परिवार
“सुनो ! मां दीवाली पर यहां आने की बात कर रही है। कह रही थी कि सुनील के बच्चे भी कह रहे हैं कि ताऊ जी का नया घर नहीं देखा है।” गौरव बोला।
“पर दीवाली तो सभी अपने घर पर ही मनाते हैं।” अनमनी सी मानसी बोली।
“पर, यह भी तो उनका अपना ही घर है।” गौरव की आवाज़ कहीं गहराइयों से आती हुई प्रतीत हुई।
वैसे तो मानसी और गौरव दोनों ही अच्छा कमाते थे, पर आजकल घर चलाना कौन सा आसान काम रह गया है। मानसी ने खर्चों का हिसाब लगाया। पिछले साल ही उन्होंने आलीशान घर बनवाया था । नए घर और कार की किस्तें, बच्चों की डांस क्लासेज की फीस वगैरह … उसके अपने परिवार के खर्चे ही बहुत थे, उस पर अगर दीवाली मनाने सास-ससुर, देवर-देवरानी और बच्चे भी आ जाते हैं तो ?? घर का बजट गड़बड़ा जाने का डर था। दूसरे इस बार धन तेरस पर हीरे का सेट लेने की सोच रखा था, अगर खुद कुछ लेती तो बाकियों के लिए भी… सोच कर ही मानसी सिहर उठी।
ख़ैर, बड़ी मुश्किल से गौरव को मन की बात समझा पाई और अंततः उन्हें बुलाने के विचार पर चुप्पी साधना ही उचित लगा।
इस मसले को हल कर, मानसी चाय का कप लेकर बैठी ही थी कि सामने कामवाली नजरें नीची करके खड़ी दिखी।
“क्या हुआ कमली, कुछ काम था क्या?” मानसी बोली।
“मैडम, हज़ार रूपये एडवांस चाहिए थे, आप अगले महीने की पगार में से काट लेना।” कमली धीमी आवाज़ में बोली।
“अरे, फिक्र न कर। इस बार दीवाली पर तुझे और तेरे पूरे घर वालों को नए कपड़े दूंगी। तुझे नए कपड़ों पर खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” तनिक गर्व से मानसी बोली।
“मैडम, आप बहुत अच्छी हैं और हमारा बहुत ही ख्याल रखती हैं।” कमली एहसानमंद होती हुई बोली “पर यह पैसे मुझे अपने परिवार के लिए चाहिए… यह गांव सास-ससुर, भाई- भाभी को यहाँ लाने गए हुए हैं। वे पहली बार बड़े शहर की दीवाली देखेंगे। अब उनके लिए कपड़े ओर मिठाई वगैरह लेने के पैसे की जरूरत है। बस बड़ों का आशीर्वाद बना रहे, पैसे मैं जल्दी ही चुका दूंगी।” उत्साहित कमली के आंखों की चमक देखते ही बनती थी। आखिरकार सालों बाद वह अपने परिवार के साथ त्यौहार मनाने वाली थी।
उसे हज़ार रुपए थमाने के बाद, अपराध बोध से घिरी मानसी आज पहली बार “अपने परिवार” के बारे में सोच रही थी।
अंजु गुप्ता