ग़ज़ल
मसअले को सहल किया मैंने।
एक रद्दो बदल किया मैंने।
हर जगह पर सफल किया मैंने।
टीम को जब चपल किया मैंने।
बिन लड़े जीत हर समर आया,
मसअला खूब हल किया मैंने।
आज का आज काम निपटाया,
टाल कर के न कल किया मैंने।
बात अपनोंकी जब कभी आयी,
भूलकर भी न छल किया मैंने।
— हमीद कानपुरी