कविता

ढाक के तीन पात

सम्बंधों के शेयर बाजार में
हर बार लगाता रहा
अपनी सकल जमा पूँजी
बिखरती हिम्मत को जुटाकर
चकनाचूर हौसलों को जोड़कर
उड़ते फाहों को धागे के रूप में
पुनः पिरोकर
हृदय को पहले से अधिक कठोर कर
समूल घाटे को भुलाकर
कुछ पाने की आस में
उजड़ते उपवन के बिखरते सुवास में
सब कुछ दाव पर लगाया
बार…..बार…..बारम्बार
लेकिन जब सम्बंध
शेयर बाजार बन गए हों
समस्त नियंता एक जुट हों
निष्कपट अभिमन्यु को
पारिवारिक मोह के व्यूह में फँसाकर
मारने में दक्ष हों
लुभावने विज्ञापन द्वारा शोषण हेतु शिखंडी
विविध घातक हथियारों के साथ
अड़े हों
निहत्थे और स्ववचनबद्ध भीष्म के सम्मुख खड़े हों
तो परिणाम……!
परिणाम वही पूर्व निर्धारित
बाजारवाद से प्रेरित
रात का दिन
दिन की रात
नये महाभारत की शुरुआत
ढाक के फिर वही… तीन पात।
— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन