ग़ज़ल
मर्ज़ हरगिज़ दया नहीं करता।
वक़्त पर जो दवा नहीं करता।
जग से डरता नहीं कभी यूँ मैं,
काम कोई बुरा नहीं करता।
मेरे नेचर में एक भारी पन,
काम हल्के किया नहीं करता।
मेरी सीरत गुलाब जैसी है,
बद महक यूँ दिया नहीं करता।
फिर हक़ीक़त कहाँ पता चलती,
ठीक से जो पता नहीं करता।
— हमीद कानपुरी