शालीन नागरिक बने, शातिर नहीं !
21 दिसम्बर 2017 को आये एक सीबीआई के विशेष अदालत के फैसले को लेकर जिन लोगों ने पंच – परमेश्वर व न्यायालय को दुहाई देने लगे थे ‘वहाँ देर है, अंधेर नहीं’, वही लोग मात्र 2 दिन बाद यानी 23 दिसम्बर 2017 को आये सीबीआई के एक अन्य विशेष अदालत के फैसले को और फैसले देनेवाले माननीय जज को पूर्वाग्रह से ग्रसित बता रहे हैं ।
ऐसे लोग स्वार्थी, एकनिष्ठ और अपनापे से बाहर नहीं आ पाते हैं, वे लोग अंध समर्थक हैं, क्योंकि दो दिन पहले न्यायालय की दुहाई देनेवाले आखिर दो दिन बाद ही न्यायालय के प्रति धैर्य क्यों खो दिए ? ….और माननीय कोर्ट के प्रति अवमाननाकारित कार्य करने लगे !
आखिर ऐसे लोग कोर्ट के फैसले (Judgements) को ‘यक्षप्रश्न’ क्यों बनाते हैं ? विदित हो, 21 दिसम्बर को 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले संबंधी वाद में पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की पुत्री कनिमोझी समेत वाद से संबंधित सभी प्रतिवादियों को एक विशेष अदालत ने वाद से बरी कर दिए, तो वे लोग अदालत और इस अदालती फैसले को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे और न्यायालय के प्रति गुण गाने लगे।
….तो वहीं जब 1996 से जारी पशुपालन घोटाले के एक मामले में 23 दिसम्बर को सीबीआई के एक अन्य विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद समेत कई संबंधित प्रतिवादियों को दोषी करार को लेकर फैसला सुनाए, तो यह निर्णय दो दिन पहले खुशी मनाने वाले उन लोगों को नागवार गुजरे।
ऐसे लोग कोर्ट के प्रति अपना दोहरा मापदंड प्रदर्शित कर अपनी तटस्थता और विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहे हैं, क्योंकि ऐसे कुमगजधारी लोग तो सिर्फ अपने तक ही सीमित रहनेवाले अंध समर्थक मात्र हैं, जो अपना काम निकालने भर ही इसतरह के नाटक किया करते हैं ।