गीत
सपने सजाने लगा आजकल हूं
मिलने मिलाने लगा आजकल हूं
हाबी हुई शख्सियत मुझ पे उनकी
खुद को भुलाने लगा आजकल हूं
इधर तन्हा मैं था उधर तुम अकेले
किस्मत समय ने ये क्या खेल खेले
गीत गजलों की गंगा तुमसे ही पाई
गीत गजलों को गाने लगा आजकल हूँ
जिधर देखता हूं उधर तू मिला है
ये रंगीनियों का गजब सिलसिला है
नाज क्यों ना मुझे अपने जीवन पे आए
तुमसे रब को पाने लगा आजकल हूं
— मदन मोहन सक्सेना